समाजवादी पार्टी का ‘फैमली ड्रामा’ महज दिखावा भर है. इसके जरीये सपा अखिलेश यादव की मासूम छवि को बचाते हुये वोट के लिये दूसरे समझौते कर रही है. फेमली ड्रामा देखकर जनता और पार्टी कार्यकर्ता दोनों को खामोश किया जा रहा है. समाजवादी पार्टी में 2 तरह के लोग हैं. एक वह लोग हैं जो अपने परिवार और करीबियों के लिये सपा को सबसे बेहतर पार्टी मानते हैं. दूसरी ओर वह लोग जो अखिलेश को बेहतर मुख्यमंत्री मानते हैं. समाजवादी पार्टी का थिंकटैंक मानता है कि अखिलेश की तारीफ करने वाले वोट देंगे या नहीं, इसमें शक है. ऐसे में पार्टी को अपने बेस वोटर को भी साथ रखना है जो दंबग किस्म का है.

चुनाव में दंबग और साफ छवि दोनो का लाभ पार्टी को मिल सके, इसके लिये ‘फैमली ड्रामा’ चल रहा है. जिसके जरीये कभी अखिलेश यादव को सामने किया जाता है तो कभी शिवपाल यादव को. सपा को ‘फैमली ड्रामा’ से सुर्खियों में बने रहने का मौका भी मिल रहा है. पौलटिक्स में पर्सनाल्टी मैनेजमेंट की जानकारी रखने वाले जानकार कहते हैं ‘सपा में फैमली ड्रामा शुरू होने के बाद प्रिंट और टीवी मीडिया से लेकर गांव, शहर तक सबसे अधिक चर्चा समाजवादी पार्टी की हुई. जो लोग अखिलेश सरकार के प्रचार में छपे विज्ञापनों को नहीं देखते थे, वह अखिलेश के प्रति सहानुभूति रखने लगे.’

सपा आज के समय में देश की सबसे बड़ी परिवारवादी पार्टी है. एक परिवार के इतने सदस्य संसद और विधानसभा में किसी और पार्टी के नहीं हैं. ऐसे में हर किसी की दिलचस्पी सपा के फैमली ड्रामा को जानने में रहती थी. सोशल मीडिया के युग में सपा में झगड़े के बाद एक एक घटना वायरल होती रही. यह सिलसिला अभी जारी है. सपा सरकार या संगठन के हर फैसले को परिवार के विवाद से जोड़ दिया जाता है. जबकि सपा में बड़े स्तर के नेता मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव और अखिलेश यादव खुद यह कह चुके हैं कि पार्टी में कोई विवाद नहीं है.

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