एक सप्ताह का समय बीत जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश की विधानसभा में मिले विस्फोटक का राज पर्दे के बाहर नहीं आ पाया है. इससे समझा जा सकता है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था का क्या हाल है? ‘हाई सिक्योरिटी’ मामला होने के बाद भी जांच में यह पता पही चल पा रहा कि विस्फोटक किस तरह का है. जांच में एक दूसरे की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं. विधानसभा के मार्शल से लेकर देश में आतंकवाद के खिलाफ गठित हुआ सबसे भरोसेमंद एटीएस तक इस मामले की जांच में लगा है. इसके बाद भी कोई परिणाम सामने नहीं आ पा रहा है. जिम्मेदार अधिकारियों के अलग अलग बयान संदेह को जन्म दे रहे हैं. जिससे अब यह सवाल उठने लगा है कि कहीं विस्फोटक को लेकर सुरक्षा दस्ता गलत बयानी तो नहीं कर बैठा?

विधानसभा में सुरक्षा के नाम पर बहुत सारे लोगों का प्रवेश अब बंद कर दिया गया है. इसका सबसे अधिक प्रभाव भाजपा के कार्यकर्ताओं पर ही पड़ा है. अब उसका प्रवेश बंद हो गया है. इससे पहले भाजपा कार्यकर्ता मंत्रियों के कमरों तक पहुंच जाते थे और यह देखते थे कि काम कैसे हो रहा है? मंत्रियों के द्वारा दूसरे दलों के कार्यकर्ताओं के काम करने को लेकर पार्टी में शिकायत भी होती थी. अब ऐसे कार्यकर्ता विधानसभा में प्रवेश नहीं कर पा रहे हैं. तबादलों से लेकर सरकारी वकीलों की नियुक्ति तक के मामले में भाजपा कार्यकर्ताओं ने सवाल उठाये हैं.

कार्यकर्ताओं के विधानसभा में प्रवेश न पाने से मंत्रियों को राहत का अनुभव हो रहा है. सुरक्षा के नाम पर ऐसे बहुत सारे लोगों का प्रवेश मुश्किल हो गया है जो अंदर के हालात को देख समझ रहे थे. सचिवालय में भी हर जगह के लिये अलग पास की व्यवस्था हो गई है. ऐसे में बिना किसी बड़ी सिफारिश के अंदर जाना मुश्किल काम हो गया है. सत्ता पक्ष ही नहीं विपक्ष के विधायकों को भी अब कार्यकर्ताओं से बचने का आसान रास्ता मिल गया है. सुरक्षा के नाम पर की जा रही सख्ती तो बन रही है पर सरकार को यह नहीं पता कि विधानसभा के अंदर मिला विस्फोटक क्या था? वह कितना खतरनाक था? उसको वहां लाने का उद्देशय क्या था? इस साजिश के पीछे कौन लोग है?

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