4 राज्यों के 18 विधानसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी और मोदी का जादू टूटता दिखाई दिया. पिछले दिनों हुए आम चुनावों में नरेंद्र मोदी की आंधी में तमाम विपक्षी दल बह गए थे. ऐसे में इन उपचुनावों पर सब की नजरें लगी थीं. खासतौर से बिहार में, जहां सत्तारूढ़ जनता दल (यूनाइटेड) समेत राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस का सफाया हो गया था. इन उपचुनावों को भाजपा की लोकप्रियता की परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा था. बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और पंजाब में 18 सीटों पर हुए उपचुनावों में भाजपा को लगे झटके से मोदी और भाजपा के तिलिस्म पर सवाल उठ खड़े हुए हैं. इन में बिहार की 10, मध्य प्रदेश की 3, कर्नाटक की 3 और पंजाब की 2 सीटें थीं. इस से पहले उत्तराखंड में 3 सीटों पर भाजपा चुनाव हार चुकी है.

आम चुनाव में भाजपा व नरेंद्र मोदी की आंधी से घबराए लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने इन उपचुनावों से पहले 20 सालों की पुरानी दुश्मनी भुला कर महागठबंधन के नाम से एक नई मोरचाबंदी की थी. इस में कांग्रेस भी शामिल है. इस गठबंधन ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था.

लालूनीतीश की मोरचाबंदी का फायदा हुआ और राज्य की 10 सीटों में से इन के गठबंधन को 6 सीटें मिल गईं. इन्होंने कुछ सीटें भाजपा से छीनी हैं. इसी तरह भाजपा के गढ़ मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने उसे नुकसान पहुंचाया तो पंजाब और कर्नाटक में भी मोदी की लोकप्रियता का फायदा भाजपा को नहीं मिल पाया. ये नतीजे बताते हैं कि मोदी की वह लहर अब कायम नहीं रही. भाजपा की आंधी को रोकने के लिए लालू यादव ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती को भी एकजुट होने की सलाह दी है. इस जीत से उत्साहित हो जदयू नेता शरद यादव पुराने मंडल के तरकश से तीर निकालने का आह्वान कर रहे हैं.

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