उत्तर प्रदेश में मोहनलालगंज, लखनऊ की एक सुरक्षित विधानसभा सीट है. यहां पर पिछड़ी जातियों की आबादी सब से ज्यादा है. मोहनलालगंज, निगोहां, नगराम और गोसाईंगंज थाना क्षेत्रों तक इस की सीमा फैली हुई है. एक गांव से दूसरे गांव तक जाने के लिए कार

और दूसरी महंगी गाडि़यों से चुनाव प्रचार होता है. अब साइकिल और ट्रैक्टर जैसे साधनों से चुनाव प्रचार नहीं होता. कार और मोटरसाइकिल में पैट्रोल डलवाने का काम उम्मीदवारों का होता है. उम्मीदवार केवल खुद के साथ चलने के लिए ही भीड़ का इंतजाम नहीं करता, बल्कि उस के कुछ खास लोग भी चुनाव प्रचार करते हैं.

भीड़ जुटाने का काम पैसे दे कर किया जाता है. भीड़ कम होती है, तो विरोधी को उम्मीदवार ताकतवर नहीं लगता. ऐसे में हर उम्मीदवार अपने साथ भीड़ ले कर चलना पसंद करता है. उस के प्रचार में नारा लगाती यह भीड़ चुनाव प्रबंधन का नतीजा होती है. बहुत सारे लोगों के लिए चुनाव रोजगार का जरीया बन जाता है.  

नेताओं के लिए चुनाव किसी कारोबार जैसा हो गया है, जहां पर वे पैसे के बल पर हर साधन जुटाते हैं. पहले पार्टियों के कार्यकर्ता अपने दल के उम्मीदवार के लिए जीतोड़ मेहनत करते थे.  कई बार तो उम्मीदवार के पास इतना पैसा भी नहीं होता था कि वह अपने प्रचार में लगे लोगों के खानेपीने का इंतजाम कर सके. कई बार तो प्रचार करने वाले अपने खानेपीने का इंतजाम खुद करते थे.

अब नेताओं को कोई चीज मुफ्त में नहीं मिलती. भीड़ से ले कर चुनाव के दूसरे साधन जुटाने में पैसों का इंतजाम करना पड़ता है. चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के खर्च की सीमा को तय कर रखा है. इस खर्च को देखें तो पता चलेगा कि नेता चुनाव लड़ने में तय सीमा के मुकाबले बेहिसाब खर्च करते हैं, पर खर्च हिसाब से दिखाते हैं.

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