तेलंगाना को मिले अलग राज्य के दरजे के मद्देनजर क्षेत्रीय नेताओं ने देश के कई हिस्सों में पृथक राज्य की मांग कर के अपनी राजनीति चमकानी शुरू कर दी है. इसी कड़ी में गोरखालैंड का झंडा उठाए वहां के नेता दार्जिलिंग की आबोहवा खराब करने में जुटे हैं. अपने सियासी फायदे के लिए इन इलाकाई नेताओं ने पहाड़वासियों की रोजीरोटी को कैसे अस्तव्यस्त कर रखा है, बता रही हैं साधना.

तेलंगाना को अलग राज्य की मंजूरी मिलने के बाद दार्जिलिंग में अलग गोरखालैंड की मांग उठी और जोरदार तरीके से उठी. इस मुद्दे पर अनिश्चितकालीन बंद आयोजित किए गए. चाय और पर्यटन दोनों उद्योगों पर बंद का असर जो रहा सो रहा, सब से बुरा असर इन दोनों उद्योगों से जुड़े लोगों की आमदनी पर रहा. लेकिन बंद के नाम पर इतना नुकसान कराने के बाद जन मुक्तिमोरचा यानी जमुमो ने एक बार फिर से गोरखालैंड टैरिटोरियल ऐडमिनिस्ट्रेशन यानी जीटीए की कमान संभाल ली है. गौरतलब है कि तेलंगाना के राज्य बनने की तरह गोरखालैंड को अलग राज्य बनाए जाने की मांग करते हुए जमुमो के प्रधान बिमल गुरुंग ने जीटीए से इस्तीफा दे दिया था लेकिन पिछले दिसंबर के आखिरी हफ्ते में एक बार फिर से बिमल गुरुंग ने जीटीए के प्रधान के रूप में शपथ ले ली है.

पहाड़ की जनता सब देख रही है. इन पहाड़ी लोगों ने अलग गोरखा राज्य के लिए बिमल गुरुंग का साथ दिया. अपनी रोजीरोटी की परवा किए बगैर पहाड़ी पुरुष और घर का चूल्हाचौका बंद कर के पहाड़ी स्त्रियां घर से निकल कर सड़क पर उतरीं. पर अब बिमल गुरुंग ने राज्य सरकार के साथ समझौता कर लिया है.

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