जो भाजपा सत्ता के बाहर रहते हुये विरोधी दलों के नेताओं को चूडियां और साडी भेंट कर अपना विरोध प्रदर्शन करती थी उसे आज दलित संगठनों के अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के लिये गुजरात से आया साबुन भेंट करना पंसद नहीं है. इन लोगों को उत्तर प्रदेश में प्रवेश से पहले झांसी से ही वापस भेज दिया गया और राजधानी लखनऊ में होने वाली विचार गोष्ठी को कैसिंल करा कर आयोजको गिरफ्तार कर लिया. अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाली भाजपा अब खुद इसकी राह का रोडा बन गई है.

संवैधानिक तरह से विरोध करना लोकतंत्र का मूलभूत अधिकार होता है. सत्ता पक्ष हमेशा इसका अधिकार विरोध करने वालों को देता है. इसका सम्मान करता है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपनी आलोचना को सहन करने की हालत में नहीं है. दलित मुद्दों को लेकर लखनऊ के प्रेस क्लब में ‘दलित अत्याचार और निदान’ विषय पर परिचर्चा होनी थी. इसके लिये आयोजक आशीष ने बुकिंग के लिये पैसा भी जमा करा दिया था. अचानक उत्तर प्रदेश प्रेस क्लब के सचिव जेपी तिवारी ने बुकिंग कैंसिल कर दी. बताया जाता है कि सरकार को यह पता चल चुका था कि परिचर्चा के बाद गुजरात से आने वाले दलित संगठन उत्तर प्रदेश के दलित संगठनों के साथ मिलकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को साबुन से बनी गौतम बुद्व की 125 किलो की साबुन की प्रतिमा भेंट करना चाहते थे. उत्तर प्रदेश की सरकार ने गुजरात से आने वालों को झांसी में रोक लिया और उनको वापस गुजरात भेज दिया.

25 कार्यकर्ता लखनऊ के नेहरू युवा केन्द्र में रूके थे. उनको वहां पर नजरबंद कर लिया गया. बाकी कार्यकर्ताओं को अलग अलग शहरों में रोक लिया गया. लखनऊ प्रेस क्लब में दलित चिंतक रिटायर आईपीएस एसआर दारापुरी, नेता रमेश दीक्षित सहित कई लोग विचार गोष्ठी में शामिल होने के लिये समय पर प्रेस क्लब पहुंच गये तो वहां पर उनको बताया गया कि विचार गोष्ठी के लिये बुकिग कैंसिल कर दी गई है. इसकी जानकारी इन लोगों को प्रेस क्लब की ओर से पहले नहीं दी गई. ऐसे में जब यह लोग आगे क्या किया जाय इस बात की चर्चा कर रहे थे उनको पुलिस ने धारा 144 के उल्लधंन के आरोप में पकड़ लिया. वहां से उनको शाम के 5 बजे तक लखनऊ पुलिस लाइन में रखा गया. बाद में 20-20 हजार के निजी मुचलके पर इस शर्त के साथ रिहा किया गया कि वह शांतिभंग करने का कोई काम नहीं करेंगे.

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