आम चुनावों का सेमीफाइनल माने जा रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे ने राजस्थान से कांग्रेस को उखाड़ फेंका तो मध्य प्रदेश में शिवराज की आंधी में कांग्रेस उड़ गई. दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर झाड़ू फिरा दी. जबकि छत्तीसगढ़ में रमन सिंह की लोकलुभावन योजनाओं के आगे कांग्रेस सम्मानजनक हार से नहीं बच पाई. मिजोरम छोड़ कर बाकी राज्यों के नतीजों से साफ है कि इन चुनावों में कांग्रेसी किले में सेंध ही नहीं लगी बल्कि पूरा किला ही ध्वस्त होने के कगार पर है. पढि़ए भारत भूषण श्रीवास्तव की रिपोर्ट.

‘जनजन से नाता है, सरकार चलाना आता है’ का नारा देने वाली कांग्रेस 5 महत्त्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों में औंधेमुंह गिरी है. दिल्ली और राजस्थान उसे गंवाने पड़े तो मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वापसी के टूटे सपने ने उसे कड़वा घूंट यह पिला दिया कि अब न जनजन से उस का नाता रहा है न ही उस के सूबेदार सरकार चला पाते हैं. अकेले मिजोरम से उसे थोड़ा सुकून मिला जो कतई निर्णायक या क्षतिपूर्ति वाला कहा जा सकता है.

कांग्रेस बुरी तरह क्यों हारी, इस सवाल का एक नहीं ढेरों अलगअलग जवाब हैं. ये वे राज्य हैं जहां कोई तीसरी ताकत कभी नहीं पनपी. कांग्रेस का अपना परंपरागत वोटबैंक इन में रहा है पर दिल्ली से यह मिथक भी टूटा है कि अगर आदर्श विकल्प हो तो मुश्किलें भारतीय जनता पार्टी की राह में भी कम नहीं. भाजपा या कांग्रेस को ही चुनना मतदाता की मजबूरी रही है. आम आदमी पार्टी की दिल्ली में अप्रत्याशित सफलता ने देशभर के लोगों को एक आस बंधाई है कि विकल्प हो तो लोग पेशेवर दलों की गिरफ्त से बाहर निकल सकते हैं. लोकतंत्र में राजनीति या नेताओं से नफरत कर उन से छुटकारा नहीं पाया जा सकता अलबत्ता उन्हें नकार कर सबक जरूर सिखाया जा सकता है.

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