‘कम्युनिस्टों की बात तो आप करें नहीं. वो कहीं नहीं हैं.’ उन्होंने कहा और हमने मान लिया. हमारा यह मानना चुनावी समर और दलगत आधार पर है. आम जनता को अपने पक्ष में मतों में बदलने से है. हमारी सहमति उन्हें अच्छी लगी. आगे भी उन्होंने जो कहा वह भी मानने लायक बात थी, कि ‘लोगों ने नरेन्द्र मोदी पर विश्वास किया है.’ यह विश्वास इस डोर से बंधी हुई है कि ‘जैसे सबको देखा, वैसे ही एक बार इनको भी देख लेते हैं.’ यह देखने की हवा 2014 से चल रही है.

देश की आम जनता इस बात को नहीं जानती कि ‘सब को देखने और इनको देखने का क्या मतलब है?’ उसके लिये यह मानी हुई बात है, कि देश में लोकतंत्र है और चुनाव से सरकारें बदली जा सकती हैं. उन्हें नहीं पता कि ‘ऐसा नहीं भी हो सकता है.’ उसने इस व्यवस्था को बदलने की बात अब तक सोची ही नहीं. उन्हें इस बात की पक्की जानकारी ही नहीं है, कि ऐसी कोई सरकार भी बनती है, जो जन समस्याओं का समाधान करती है. जो देश की आम जनता से देश को बनाती है.

वो तो यह मान कर चलती है, कि सरकारें ऐसी ही होती हैं, अपने मतलब के लिये काम करती हैं. इसलिये कम मतलबी सरकार भी चलेगी. वैसे भाजपा की मोदी सरकार मतलबी सरकार है, मगर वह अपने मतलब को ‘राष्ट्रवाद’ और ‘आर्थिक विकास’ के परतों के नीचे छुपा कर रखती है. लोकतंत्र की मौजूदा सरकारों के लिये आम जनता सरकार बनाने का जरिया और बाजार के लिये उत्पादन का साधन और उपभोक्ता है. वह दोनों के लिये जरूरी है, इसलिये जिन्दा है. जन समर्थक सरकार की मांग को वैधानिक तरीके से खारिज किया जा चुका है.

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