एक अप्रैल से देसी शराब पर रोक लगाई गई और 5 अप्रैल से विदेशी शराब और ताड़ी पर भी पूरी तरह से पाबंदी लगाने के बाद बिहार ‘ड्राइ स्टेट’ बन गया है. राज्य में किसी भी तरह की शराब बेचने, खरीदने और पीने पर रोक लग गई है. होटलों, क्लबों, बार और रेस्टोरेंट में भी शराब का लुत्फ नहीं लिया जा सकेगा. इससे जहां सरकार को सालाना 4 हजार करोड़ रूपए का नुकसान उठाना पड़ेगा वहीं शराब की कुल 4771 दुकानों पर ताला लटक जाने से करीब 25 हजार परिवारों की रोजी-रोटी फिलहाल बंद हो गई है.

पिछले साल 20 नबंबर को जब पांचवी बार नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने उसी समय ऐलान कर दिया था कि एक अप्रैल 2016 से बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी और उन्होंने यह कर दिखाया. बिहार में महिलाएं काफी दिनों से शराब पर रोक लगाने की मांग करती रही हैं. मर्द शराब पीते हैं और उसका खामियाजा महिलाओं और बच्चों समेत समूचे परिवार को उठाना पड़ता है. पूरी तरह से शराबबंदी का ऐलान कर नीतीश ने अपने मजबूत इरादे तो जाताए हैं, लेकिन इस फैसले से सरकार के सामने कई चुनौतियां और मुश्किलें खड़ी होने वाली है, जिससे निबटना आसान नहीं होगा. जहां भी शराब पर रोक लगी है वहां शराब माफियाओं और तस्करों को बड़ा नेटवर्क खड़ा हो जाता है और सरकार के मंसूबे फेल हो जाते है. शराब पर रोक भी नहीं लग पाती है और सरकार को इससे होने वाले हजारों करोड़ रूपए से हाथ भी धोना पड़ता है.

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