राजनीति के रंगमंच पर भाजपा का परदा उठ रहा है. केंद्र में भाजपा की सरकार को 2 साल होने वाले हैं. तमाम चुनावी वादे नेपथ्य में चले गए हैं. भाजपा की कमियां खुल कर सामने आने लगी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा चौतरफा चुनौतियों से घिरे नजर आने लगे हैं. भाजपा की पहली चुनावी चुनौती है जिस में उसे चुनाव दर चुनाव मात मिल रही है. उस की दूसरी चुनौती पार्टी के अंदर से उठने वाली आवाजें हैं जो मोदी के करीबी लोगों को कठघरे में  खड़ी कर रही हैं. तीसरी चुनौती बेलगाम महंगाई व जनता की अन्य परेशानियां हैं. मोदी खुद की चमक खोते नजर आ रहे हैं. मोदी के अंधभक्त समर्थक जिस तरह से गांधी परिवार पर हमला कर रहे हैं उस से लोगों में कांग्रेस के प्रति संवेदना बढ़ने लगी है. राममंदिर पर संघ परिवार का बढ़ता दबाव चौथी चुनौती के रूप में सामने है. इस का संतुलन बनाने के लिए मोदी पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने की पहल करते नजर आ रहे हैं. संघ परिवार ने मोदी को 2 साल की छूट दी, अब वह देने के मूड में नहीं है. ताजा मामला डीडीसीए में भ्रष्टाचार को ले कर  है जिस में केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के घिरने से मोदी और भाजपा चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंस गए हैं.

आप बनाम जेटली की लड़ाई में जेटली का पलड़ा तब भारी पड़ता दिखा जब सतर्कता विभाग के प्रधान सचिव चेतन सांघी की अगुआई में 3 सदस्यीय समिति ने विस्तार से दी अपनी रिपोर्ट में अरुण जेटली का नाम नहीं लिया. सतर्कता विभाग के नाम लेने पर भाजपा के एम जे अकबर ने कहा कि जिस फाइल को ले कर आप के नेता हंगामा कर रहे थे उस में जेटली का नाम तक नहीं है. हां, सतर्कता समिति ने डीडीसीए पर लगे आरोपों को देखते हुए सिफारिश कर दी कि डीडीसीए पर लगे आरोपों को देखते हुए बीसीसीआई को इसे तुरंत निलंबित कर देना चाहिए. वित्त मंत्री अरुण जेटली पूरे प्रकरण पर अपनी प्रतिक्रिया देते कहते हैं, ‘‘मैं ने डीडीसीए से एक पैसे का फायदा नहीं लिया. अध्यक्ष के तौर पर पूरे कार्यकाल में अपना वाजिब खर्च भी डीडीसीए से नहीं मांगा.’’ अरुण जेटली को दी गई राहत असल में छलावा है. जांच रिपोर्ट ने पाया है कि पैसे की गड़बड़ है पर यह नहीं ढूंढ़ा कि किस ने की. अत: अरुण जेटली इस रिपोर्ट का केवल प्रचारात्मक लाभ उठा सकते हैं.

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