बंगलादेश का राष्ट्रीय गीत है ‘आमार सोनार बांग्ला...’ लेकिन पिछले कुछ समय से देश के इसलामी कट्टरपंथियों ने वहां जिस तरह खून की होली खेलनी शुरू की है उस के कारण अब आमार रक्तिम बांग्ला कहने की नौबत आ गई है. पिछले कई वर्षों से बंगलादेश में ब्लौगरों के लिए जीना मुश्किल हो गया था. अपने विचार व्यक्त करने के बदले इसलामी कट्टरपंथियों द्वारा मौत दी जा रही थी. लेकिन अब ब्लौगरों के बाद लेखक, अलपसंख्यक, सैकुलर और आम लोगों को भी निशाना बनाया जा रहा है. पिछले साल अक्तूबर से ऐसे आम लोगों को भी कट्टरपंथी अपना निशाना बनाने लगे हैं जिन की सोच इसलाम विरोधी नहीं थी और न ही वे नास्तिक थे. हत्या की इन घटनाओं ने दुनियाभर का ध्यान खींचा है. पिछले साल सितंबरअक्तूबर में जापान और

इटली के नागरिकों की हत्या कर दी गई. इन का अपराध इतना ही था कि ये विदेशी थे. ये लोग न तो नास्तिक थे और न ही इसलाम विरोधी. इस के अलावा हाल के महीनों में हुई हत्याओं ने बंगलादेश के लोगों को काफी हैरत में डाल दिया है. ढाका के जगन्नाथ विश्वविद्यालय के छात्र नजीमुद्दीन समद की भरे बाजार गला रेत कर हत्या कर दी गई. समद कोई इसलाम विरोधी ब्लौगर नहीं थे. इस के बाद  राजशाही विश्वविद्यालय के प्रोफैसर रजाउल करीम सिद्दीकी की सरेआम गला रेत कर हत्या कर दी गई. इस घटना के ठीक 2 दिनों बाद जुल्हास मन्नान और उन के मित्र तनय फहीम को मार डाला गया. मन्नान को बंगलादेश में समलैंगिकों के अधिकारों के बड़े समर्थक के तौर पर जाना जाता था. वे समलैंगिकों के समर्थन में ‘रूपबान’ नामक पत्रिका भी निकालते थे. उन के करीबियों के मुताबिक मन्नान ने कभी इसलाम का विरोध नहीं किया. वे सिर्फ देश में समलैंगिकों को उन के अधिकार दिलाने की मुहिम छेड़े हुए थे. इस के बाद मई में एक मुसलिम सूफी संत, एक बौद्ध भिक्षु, एक हिंदू व्यवसायी और एक ईसाई डाक्टर की हत्याएं की गईं. इन सभी हत्याओं की जिम्मेदारी इसलामिक स्टेट (आईएस) ने ली जिस की घोषणा संगठन से जुड़ी वैबसाइट ‘अमक न्यूज’ पर की गई.

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