कुछ महीने पहले दक्षिण में कावेरी के जल बंटवारे को लेकर जहां कर्नाटक और तमिलनाडु की तनातनी के बाद दोनों राज्यों में उग्र प्रदर्शन, आगजनी व तोड़फोड़ की घटनाओं का लंबा सिलसिला चला और महीने भर में बमुश्किल मामला ठंडा पड़ा, वहीं अब उत्तर में सतलुज-यमुना लिंक नहर को खोलने और हरियाणा को इसके जरिए पंजाब से पानी दिए जाने के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला दिए जाने के बाद दोनों राज्यों में राजनीतिक लड़ाई तेज हो गई है.

हालांकि अभी नौबत कर्नाटक और तमिलनाडु जैसी तो नहीं आई है, लेकिन सच्चाई यह है कि कई जगह जर्जर, टूटी-फूटी और सूखी नहर में पानी के लिए आग लगाने में दोनों राज्यों के सियासी दल कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं. चूंकि पंजाब में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं, इसलिए इस लिंक नहर के पानी को एक बड़े मुद्दे के तौर पर भुनाने में कोई दल किसी से पीछे नहीं रहना चाहता. भले ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश यानी हुक्म की उदूली हो जाए.

इस मामले में दोनों राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की दोहरी भूमिका दयनीय होने की हद तक हास्यास्पद हो गई है. भाजपा हरियाणा में सत्तारूढ़ है और पंजाब की अकाली सरकार में हिस्सेदार है, लेकिन पंजाब के अगले विधानसभा चुनाव में बाजी पलटने को आतुर कांग्रेस जहां हरियाणा को पानी न दिए जाने के पक्ष में आक्रामक रुख अपनाए हुए है, वहीं हरियाणा की कांग्रेस इकाई हर हाल में पानी लेने के लिए हरियाणा सरकार पर राजनीतिक दबाव बनाने में लगी हुई है.

चुनावी तकाजा ही है कि पंजाब के बुजुर्गवार मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज करते हुए साफ तौर पर हरियाणा को पानी देने से इंकार कर दिया है. वहीं कांग्रेस सांसद और पंजाब की सत्ता के दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद संसद की सदस्यता से इस्तीफा देकर पानी के लिए शहीद होने में जरा भी देर नहीं की थी.

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