अपनी ठेठ स्टाइल में सियासत कर बिहार में दशकों सत्ता की मलाई जीमने वाले राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाला भारी पड़ गया. इसी चारे के चलते जेलदर्शन को भेजे गए लालू के बिना बिहार की सियासी जमीन, राजद और घरआंगन कितने सूने हैं, बता रहे हैं बीरेंद्र बरियार ज्योति.

‘‘ऐ गाय चराने वालो...ऐ सूअर पालने वालो...ऐ कूड़ा बीनने वालो... ऐ झोंपडि़यों में रहने वालो...ऐ बकरी दुहने वालों...ऐ दलित और पिछड़ों के बेटो, पढ़नालिखना सीखो.’’ साल 1990 में बिहार की सत्ता संभालने के बाद लालू प्रसाद यादव अपनी हर सभा में अपने भाषण की शुरुआत इन्हीं पंक्तियों से करते थे. उन्होंने गरीबों और दलितों को पढ़ने की नसीहत तो दी पर सत्ता के नशे में बौरा कर घोटालों के जाल में फंस गए. जिस का नतीजा है कि 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले के मामले में उन्हें और उन के कुनबे को जेल की सलाखों के पीछे ठूंस दिया गया है.

लालू को 5 साल की कैद और 25 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई गई है. उन के जेल जाने के बाद उन की सियासत और उन की पार्टी मटियामेट होने के कगार पर पहुंच गई है. जिस पार्टी को लालू ने तिनकातिनका जोड़ कर बड़ी ही मशक्कत से तैयार किया था, वह लालू के जेल जाने के बाद बिखरने के कगार पर पहुंच गई है.

लालू स्टाइल की ठेठ गंवई सियासत की कमी आज बिहार को खल रही है. बिना किसी लागलपेट के अपनी धुन में अपने मन की बात और भड़ास मौकेबेमौके कह देने वाले लालू यादव के बगैर बिहार का राजनीतिक गलियारा सूना सा पड़ गया है. किसी को हड़काने और पुचकारने, दोनों की कला में लालू को महारत हासिल थी और इस कला का उन्होंने सियासत में जम कर इस्तेमाल किया और खूब फायदे भी उठाए. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव के दौरान पटना के ही दानापुर इलाके में लालू की सभा थी. उन के समर्थकों की भीड़ से मैदान पट चुका था. प्रैसवालों के बैठने के लिए रिजर्व सीट पर भी राजद के कार्यकर्ताओं ने कब्जा जमा लिया. सीट को ले कर प्रैसवालों और आयोजकों के बीच गरमागरम बहस चल ही रही थी कि लालू मंच पर आ गए. प्रैसवालों ने उन्हें देखते ही कहा कि वे प्रोग्राम कवर नहीं करेंगे. लालू ने पहले उन्हें समझाया पर जब प्रैसवाले जिद पर अड़ कर सभास्थल से जाने लगे तो लालू ने हंसते हुए कहा, ‘बिना लालू यादव के समाचार का तुम लोगों का अखबार बिकेगा क्या? संपादक पूछेगा कि लालू की खबर क्यों नहीं लाए तो क्या जवाब दोगे?’

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