देश और समाज बदल रहा है, पर उसकी सोच अभी भी पुरानी और दकियानूसी है. जहां महिला को पैर की जूती समझा जाता था. पैरों की जंजीरों और रूढिवादी सोच को तोड़कर जब कोई महिला समाज में आगे बढ़ती है तो उसको लेकर तमाम तरह की चुटीली बातें की जाती हैं. केवल आम लोग ही नहीं, मीडिया और दूसरे जिम्मेदार स्तंभ तक महिलाओं के विषयों पर बहुत संवेदनशील नजर नहीं आते हैं.

मौरल पुलिसिंग के बहाने पुरुषवादी दकियानूसी सोच को समाज में थोपने का पूरा काम होता है. इसके बहाने समाज की आधी आबादी को हाशिय पर ढकेलने का काम होता है. अपमानजनक बात यह है कि अपने बल पर तरक्की करने वाली महिलाओं के चरित्र पर हमला किया जाता है. सोशल मीडिया के जमाने में तो ऐसी घटनायें तेजी से बढ़ती जा रही हैं.

असम की विधायक अंगूरलता डेका की फोटो वायरल करते समय असल की जगह गलत फोटो वायरल कर दी गई. अंगूरलता डेका एक्टिंग की दुनिया से राजनीति में आई है. उनके ग्लैमरस फोटो कोई अनहोनी बात नहीं है. ऐसे में उनकी पुराने फोटो को दिखा कर क्या जताने की कोशिश की जा रही थी. यह सभ्य समाज की सोच नहीं हो सकती.

अंगूर लता डेका का मामला चल ही रहा था कि उत्तर प्रदेश से राज्यसभा का निर्दलीय चुनाव लड़ने वाली समाजसेवी प्रीति महापात्रा को लेकर समाज की घटिया सोच सामने दिखने लगी. प्रीति महापात्रा कृष्ण लीला फांउडेशन चलाती है. वह टायलेट बनाने की मुहिम चला कर स्वच्छता के लिये काम कर रही हैं. प्रीति नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय विचार मंच की अध्यक्ष भी हैं. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मे जब वह राज्यसभा का नामांकन करने आईं, तो सब कुछ उनके आसपास ही केन्द्रित हो गया. टीवी चैनलों से लेकर अंग्रेजी अखबारों तक ने उनकी योग्यता को नजरअंदाज कर उनके सबंधों को भाजपा नेताओं से जोड कर देखना शुरू कर दिया.

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