वे लोग वाकई अति दूरदर्शी और ज्ञानी हैं जो यह कह रहे हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी अब राष्ट्रपति नहीं बन पाएंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन सहित 13 लोगों पर साजिश का मुकदमा चलाने का फैसला दिया है. इनमे एक और अहम नाम साध्वी उमा भारती का भी है, जिन्होंने उम्मीद के मुताबिक बड़ी मासूमियत से कहा कि जो था खुल्लम खुल्ला था, कोई साजिश नहीं थी. अव्वल तो उमा का सार्वजनिक रूप से दिया गया यह बयान ही यह जताने काफी है कि सचमुच उस दिन अयोध्या में कोई साजिश नहीं हुई थी, अब यह तो अदालत की दरियादिली या मजबूरी है कि वह किसी फैसले पर पहुंचने के लिए चार्ज शीट, गवाह और सबूतों वाला नाटक खेले और इस ऐतिहासिक मुकदमे का अंत करे.

आमतौर पर भाजपाई जब खुश होते हैं तो आतिशबाजी जरूर चलाते हैं, जो इस फैसले पर नहीं चलाई गईं तो आम लोगों को लगा कि ऐसा होना भाजपा अफोर्ड नहीं कर सकती जबकि हकीकत यह है कि केसरिया मनों में लड्डू फूट रहे हैं.  2019 की इन्हीं गर्मियों तक फैसला आ पाया तो चित नरेंद्र मोदी की और पट भाजपा की होगी. अगर मुलजिम साहेबान बरी हुये और न हुये तो भी एक और मंदिर निर्माण की पटकथा तो लिखाना शुरू हो ही गई है.

बकौल विनय कटियार और उमा भारती जान देना पड़े या फांसी हो मंदिर तो वहीं बनाएंगे. देश का माहौल धार्मिक कट्टरवाद की इतनी गिरफ्त में शायद 90 के दशक में भी नहीं था, जब भज भज मंडली राम के नाम पर घर घर से चंदा इकट्ठा करते मंदिर निर्माण के लिए इसी आस्था के की दुहाई देते प्राणों की आहुति देने आमादा थी. अब तस्वीर यह है कि मुसलमानों का टेंटुआ हिंदुवादियों के पंजे में है, अजान से किसी गवैये की नींद खुलती है तो वह झट से ट्वीट कर देता है और देखते ही देखते हल्ला मच जाता है. मोदी, योगी को मुस्लिम महिलाओं पर दया आ रही है, क्योंकि उन्हे झट से तलाक मिल जाता है, हिन्दू दंपत्तियों की तरह सालों साल अदालत की चौखट पर नाक रगड़ते एक उम्र जाया नहीं करना पड़ती.

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