अकेलेपन की टीस बेहद पीड़ादायक होती है. इस के एहसास की पीड़ा तब तक इंसान को महसूस नहीं होती है जब तक वह इस का भुक्तभोगी न हो. इस अकेलेपन को दूर करने का सब से बड़ा संबल है, एक साथी या जीवनसाथी का होना. साथी की जरूरत जवानी में तो होती ही है पर बुढ़ापे में अधिक होती है. चाहे स्त्री हो या पुरुष, जिंदगी की अन्य जरूरतों की तरह ही शारीरिक जरूरत भी हर इंसान की एक अहम जरूरत है, जो यौवन में ही नहीं, यौवन की दहलीज के पार भी महसूस होती है.

वृद्धावस्था में किसी की शादी की बात सुन कर अकसर हम सब चौंक जाते हैं. उसे दोषी करार देते हैं. पर क्यों? इस के पीछे क्या कारण है, उस ओर हम ध्यान नहीं देते. ‘एक महिला ने 62 साल की उम्र में अपना विवाह बड़ी धूमधाम से किया...’ अखबार में छपी इस खबर ने कुछ पाठकों को जरूर चौंका दिया होगा पर यह घटना न तो असामान्य है, न अमानवीय. मानसिक, सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से अकेले रहने की टीस से नजात पाने के लिए हर इंसान बेचैन रहता है. वह इस कैद से बाहर निकल कर, खुली आबोहवा में सांस ले कर जीना चाहता है. क्या यह अपराध है?

बचपन और किशोरावस्था में इस अकेलेपन के एहसास से इंसान पूरी तरह से अनभिज्ञ रहता है. जवानी में उम्र के जोश और उत्साह के उन्माद में डूबा रहता है. इस भागदौड़ में कब उस की जवानी बीत जाती है, उसे पता ही नहीं चल पाता है. जब वह वृद्धावस्था में कदम रखता है, तो इस सत्य से रूबरू होता है. और जब उसे इस का एहसास होता है, तो वक्त के सारे पंछी उस के हाथों से उड़ चुके होते हैं.

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