‘बेटी और बहू में कोई फर्क नहीं होता. शादी के बाद बेटी घर से विदा होती है तो घर में बहू के रूप में बेटी आ जाती है.’ यह एक आदर्श परिवार की आदर्श सोच है. पर ऐसा कितने घरों में होता है, यह देखने की बात है, क्योंकि जब कोई लड़की किसी घर में बहू बन कर जाती है तो यह पाया गया है कि वहां सासससुर, ननददेवर, जेठजेठानी उस पर हुक्म बजाते नजर आते हैं. गीता के साथ भी ऐसा हुआ. उस की शादी मुकेश के साथ कुछ दिन पहले ही हुई थी. एक शाम को जब मुकेश घर लौटा तो देखा कि गीता का मूड उखड़ा हुआ था.

वजह पूछी तो गीता सुबकने लगी और बताया, ‘‘आज सुबह आप के छोटे भाई को चाय देने में थोड़ी देर हो गई तो सासू मां मुझ पर बरस पड़ीं. उन की देखादेखी देवरजी भी मुझ पर राशनपानी ले कर चढ़ गए. अब बताओ इस में मेरी क्या गलती है?’’ महेश कुढ़ कर रह गया. उस ने गीता को ही समझाने की कोशिश की कि इतनी छोटीछोटी बातों को दिल से मत लगाया करो लेकिन उस ने गीता के इस सवाल को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया कि घर की बहू पर हर छोटेबड़े का हुक्म चलाना कहां तक जायज है?

महेश का फर्ज बनता था कि देवर के चाय मांगने को ले कर अपनी मां की नाराजगी को उसे हलके में नहीं लेना चाहिए था क्योंकि यही छोटीछोटी बातें बाद में बड़ी तकरार की वजह बन जाती हैं. अजीब सा लगता है पर बेटे की बीवी पर ससुराल वालों खासकर सास का हुक्म चलने की एक अहम वजह रसोई होती है. यहां वास्तुदोष की बात नहीं हो रही है कि रसोई को किस दिशा में करने से इस तरह के झगड़े नहीं होंगे, बल्कि जब कोई लड़की ब्याह कर अपनी ससुराल आती है तो वह रसोई को अपने तरीके से चलाना चाहती है. अगर कहीं गलती से वह लजीज खाना बनाना जानती है तो सास को लगता है कि गई रसोई हाथ से. इस से वह बहू के खाने में कमी निकालने की कोशिश करती है ताकि उस का मनोबल टूट जाए. जब कभी कोई दूसरा बहू के खाने में कमी बताता है तो सास की पौबारह हो जाती है. वह हुक्म भी ताने देदे कर सुनाती है जिस से शह पा कर देवरननद या कभीकभी तो ससुर भी इस तकरार में शामिल हो जाते हैं.

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