सेक्स पति पत्नी के आपसी संबंधों को मजबूती देता है. जब एक पक्ष को एतराज हो तो यही सेक्स तलाक का आधार भी बन सकता है. भारत में अभी वैवाहिक बलात्कार कानून को मान्यता नहीं मिली है. इससे पत्नी को पति के खिलाफ बलात्कार कानून का प्रयोग करने का अधिकार हासिल नहीं है. महिला अधिकारों की बात करने वाले इस बात की हिमायत कर रहे हैं कि देश में वैवाहिक बलात्कार कानून लागू किया जाये. वैवाहिक बलात्कार कानून भले ही देश में लागू न हो पर सेक्स का आधार बनाकर तलाक मांगने और पति को परेशान करने के मामले तेजी से बढ रहे हैं. पारिवारिक न्यायालयों, पुलिस थानों और सामाजिक संगठनों के पास ऐसे तमाम ममाले आते हैं, जिनमें पत्नी की तरफ से पति के खिलाफ आईपीसी की धरा 377 के तहत मुकदमा लिखे जाने की बात कहीं जाती है. पति के खिलाफ यह धारा लगाई जाये इसके लिये पत्नी कहती है कि उसके पति ने उसके साथ जबरन अननैचुरल सेक्स यानि अप्राकृतिक सेक्स संबंध बनाया गया. कई बार यह आरोप भी लगाया जाता है कि अप्राकृतिक सेक्स संबंध की कोशिश की गई.

पति परिवार कल्याण संस्था की प्रमुख इंन्दू सुभाष कहती है ‘तलाक लेने के समय पति पत्नी के बीच दूरी इतना बढ जाती है कि पत्नी पति को ज्यादा से ज्यादा परेशान करने की कोशिश करती है. इसके लिये वह कडे से कडे कानून का सहारा लेना चाहती है. धारा 377 इसमें सबसे अधिक कारगर होती है. आईपीसी की धारा 377 संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आती है. इसके तहत जमानत लेना मुश्किल ही नहीं असंभव होता है. आरोप लगाने के बाद पत्नी को कुछ साबित करने की जरूरत नहीं होती. पति को ही अपनी बेगुनाही साबित करनी पडती है. अगर पति के खिलाफ आरोप सही पाया जाता है तो उसे 10 साल तक की सजा हो सकती है.’ इस तरह के आरोप से घबराकर पति जल्द ही तलाक के लिये राजी हो जाता है. यही कारण है कि पत्नियां तलाक के लिये धारा 377 को आधार बनाने लगी हैं.

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