सुरक्षित प्रसव के लिए सोनोग्राफी मशीन की अहमियत अब किसी सुबूत की मुहताज नहीं रह गई है. जच्चाबच्चा की बेहतरी के लिए वरदान साबित होने वाली इस मशीन के इस्तेमाल पर मध्य प्रदेश में एक और नियम लागू कर दिया गया है, जिस से जाहिर यह होता है कि सरकार को गर्भवती महिलाओं की चिंता कम बेमतलब के कायदेकानून बना कर उन पर अमल करने की सनक ज्यादा है. तमाम सरकारी और प्राइवेट नर्सिंगहोम्स में एक सूचना चिपकाना कानूनन अनिवार्य है कि यहां प्रसवपूर्व गर्भ में लिंग परीक्षण नहीं किया जाता. यह कानूनी अपराध है. गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की यह जानने का हक मां को है या नहीं और होना चाहिए या नहीं इस पर बहस की काफी गुंजाइश है, लेकिन लिंग परीक्षण को गैरकानूनी करार देने और ऐसी जांच करने वालों को अपराधी मानने के बाद भी सरकार को तसल्ली नहीं हुई तो उस ने और एक नया फरमान जारी कर दिया.

यह फरमान भी पहले के नियमों जैसा अव्यावहारिक और गर्भवती महिलाओं के लिए झंझट खड़ा करने वाला है, जिस के मुताबिक अब गर्भवती महिलाओं को सोनोग्राफी करवाने से पहले एक फार्म जिस का नाम एफ है औनलाइन भरना पड़ेगा. इस फार्म को भरे बगैर अगर सोनोग्राफी होती है तो संबंधित डाक्टर के खिलाफ पीसी ऐंड पीएनडीटी ऐक्ट के उल्लंघन का मामला दर्ज करने के साथ ही उस की मशीन भी सील कर दी जाएगी.

गत जुलाई को जैसे ही गर्भधारणपूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान तकनीक अधिनियम की राज्य सलाहकार समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया वैसे ही अधिकतर प्राइवेट नर्सिंगहोम संचालकों ने अपनी सोनोग्राफी मशीनें डब्बों में बंद कर के रख दीं और कुछ ने तो एक नई तख्ती टांग दी कि यहां सोनोग्राफी की ही नहीं जाती. बहुतों ने बाकायदा लिखित में स्वास्थ्य विभाग को इस बाबत सूचना देने में ही अपनी भलाई और बेहतरी समझी तो बात हैरत की नहीं, बल्कि कई मानों में चिंता की है कि आखिर क्यों सरकार कोख पर इतने पहरे लगाने पर उतारू है कि लोग बच्चा पैदा करने के नाम से ही घबराने लगें.

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