2012 में शुरु हुई बिल्डिंग को बनाने में 1300 करोड़ रुपए खर्च हुए. शुरुआती बजट 700 करोड़ था. इसे बनने में तीन साल लगे. लखनऊ के गोमतीनर में बनी यह कोर्ट आवागमन के हिसाब से भी बेहतर जगह पर है. जजों को तनाव से बचाने के लिए फिजियोथैरेपी सेंटर की भी व्यवस्था परिसर में ही की गई है. बिल्डिंग की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे जिस तरफ से देखा जाएगा उसी तरफ बिल्डिंग का फ्रंट दिखाई देगा. इसके किसी भी साइड में जाने पर लोगों को ये नहीं लगेगा कि वे बिल्डिंग के पीछे की तरफ आ गए हैं.

कोर्ट रूम में ज्यादातर लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. कोर्ट रूम को उसी तरह से बनाया गया है, जिस तरह लोग टीवी में देखते आए हैं. कोर्ट रूम का लुक पुराना है, लेकिन इंटीरियर मॉडर्न पैटर्न पर बनाया गया है. कोर्ट परिसर में अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं वाला जिम भी बनाया गया है. साथ ही कोर्ट की लाइब्रेरी में करीब एक लाख किताबें होंगी. पूरा परिसर वाईफाई से लैस होगा. कोर्ट परिसर में तीन हजार कारों के पार्किंग की व्यवस्था है. जज, वकील और पब्लिक तीनों के लिए अलग-अलग पार्किंग की व्यवस्था की गई है.

बिल्डिंग को बलुआ पत्थर से बनाया गया है. जिसे चुनार और राजस्थान से मंगाया गया है. इनकी खासियत होती है कि ये 150 साल तक खराब नहीं होती. यह बिल्डिंग क्लासिकल और मॉर्डन दोनों ऑर्किटेक्चरल का खूबसूरत नमूना है. देश में अब तक इससे बड़ा और खूबसूरत हाईकोर्ट नहीं बना है. बिल्डिंग को बाहर से देखने पर संसद भवन जैसा लुक दिखता है. इसकी डिजाइन में किसी को कॉपी नहीं किया गया है. इस बात का ध्यान रखा गया है कि यह ट्रेडिश्नल तो हो, लेकिन कॉपी न हो.

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