मशहूर पार्श्वगायक और गजल गायक रूप कुमार राठौड़ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. जब सभी रो रहे हैं कि गजल गायकी खत्म हो गयी, तब भी वह गजल गायकी से जुड़े हुए हैं. तो वहीं वह फिल्मों के लिए संगीत की धुन भी बना रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने अपनी शास्त्रीय गायक पत्नी सोनाली राठौड़ के साथ मिलकर अपनी बेटी रीवा राठौड़ को ऐसी शिक्षा दी कि आज उनकी बेटी रीवा राठौड़ इंटरनेशनल म्यूजिक आर्टिस्ट के रूप में नाम कमा रही है. हाल ही में जब रूप कुमार राठौड़ से मुलाकात हुई, तो उनसे संगीत के साथ साथ बच्चों को किस तरह से परवरिश दी जानी चाहिए,इस पर भी बात हुई..   

आपने अपनी बेटी रीवा को जब वह छह वर्ष की थी, तब पियानो खरीद कर दिया था. इसके पीछे आपकी सोच क्या थी?

- यह मेरी जिदंगी के अनुभव का परिणाम था. मैं शुरू से तबला बजाता था. 25 वर्ष तक तो मैं तबला बजाता रहा. 25 वर्ष की उम्र के बाद जब मैंने गायन में कदम रखा, तो यह मेरे लिए बहुत बडी़ समस्या थी. मुझे लगा कि गले से गाना बहुत अजीब लग रहा हैं. मुझसे गाना हो नहीं पा रहा है. पर मैंने गाना सीखा. उसी वक्त मैंने ठान लिया था कि मैं अपने बच्चों को उनके बचपन से ही इतना कुछ सीखाउंगा कि बड़े होने के बाद वह जिस भी क्षेत्र में जाएं, तो उन्हे मेरी तरह यह अहसास ना हो कि इस उम्र में मैं कैसे सीखूं? उनके मन में असुरक्षा की भावना ना आए. वह यह न सोचे कि,‘काश! मैंने शुरू में ही सीख लिया होता, तो आज मुझे समस्या न आती.’ देखिए, हम तो आज भी कई जगह अटक जाते हैं. जब हम दक्षिण भारत में गाना गाने पहुंचते हैं, तो समस्या आ ही जाती हैं. अब हम चालाक हैं, इसलिए किसी तरह से सब मैनेज कर लेते हैं. लेकिन समस्या आती ही है. तो जब मैंने अपनी बेटी रीवा की संगीत में रूचि देखी, तो सोचा कि मैं इसे पियानो सीखाउंगा. इसलिए मैं पियानो खरीदकर ले आया. तथा रीवा को पियानो सिखाने के लिए शांति शेल्डन को शिक्षक नियुक्त किया था.

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