चाहे प्रेम और विरह के अलावा शादी-ब्याह का अवसर हो या पर्व-त्योहारों का, हरेक मौके के लिए उन्होंने गीत गाए हैं. उनके गीतों के बगैर कोई भी ब्याह और पर्व पूरा हो ही नहीं सकता है. जर्मनी, बेल्जियम, हालैंड, सूरीनाम, मारीशस, मिस्र आदि कई देशों में भोजपुरी और मैथिली लोक गीतों का परचम लहराने वाली मशहूर लोक गायिका साफ लहजे में कहती हैं कि बाजार में बिकने के लिए ‘बाजारू’ होना जरूरी नहीं है. अच्छी और दिल से निकली कला ही बिकती हैं और वही लंबे समय तक लोगों के दिलों में जिंदा रहती हैं. ‘लोक संगीत में धरती गाती है, पहाड़ गाते हैं, नदियां गाती हैं, पफसलें गाती हैं, ऋतुएं गाती हैं. इसका कोई ओर-छोर नहीं है.’ यह कहते हुए उनकी आंखें चमक उठती हैं. बिहार कोकिला कही जाने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा ने लोक गीतों को घर-घर पहुंचा दिया है.

श्रद्वांजलि, कजरी, विवाह गीत, मैथिली लोक गीत, सोहर, मेंहदी, होली, कजरा के धर, बिरही बंसुरिया, बैरन कोयलिया, सांवरी सूरतिया, परदेशी बलमुआ, पिरितिया, खइली बड़ा धेका, अनमोल दूल्हा, दुल्हा-दुल्हिन,  बंध्न, माटी के रंग आदि शारदा सिन्हा के प्रमुख एवं लोकप्रिय एलबमों में शामिल हैं. पनिया के जहाज से पलटनिया बन अइहा पिया.., द्वार के छेकाई से पहिले चुकाव हे दुलरवा भैया.., जगदंबा घर में दीयरा.., कखन हरब दुख मोर.., चैत के महिनवा में प्रभु मोर गईल परदेस.., बतावा चांद केकरा से कहां मिले जाला.., कोयल बिन बगिया न सोभे राजा.., मोरा भैया जा ला मंहगा मुंगेर.., कन्हैया घर चलूं आजू खेलू होली.. जैसे शारदा सिन्हा के सैंकड़ों लोक गीत बिहार और उत्तर प्रदेश समेत देश के कोने-कोने में गूंज रहे हैं.

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