‘बैंडिट क्वीन’, ‘खामोशी’, ‘हजार चौरासी की मां’, ‘समर’, ‘दीवानगी’, ‘कंपनी’ आदि फिल्मों के जरिए अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं सीमा बिस्वास को चुनौतीपूर्ण काम करना पसंद है. अपने कैरियर के बारे में उन्होंने खुल कर बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश :

आप ने हमेशा लीक से हट कर फिल्मों में काम किया, इस की वजह?

मैं अर्थपूर्ण फिल्मों में काम करना पसंद करती हूं, जिस से समाज को कुछ सीख मिले. मेरी पिछले दिनों रिलीज फिल्म ‘मंजूनाथ’ में भी ऐसी ही बात थी. सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म को हमारे देश में दिखाया जाना जरूरी था इसलिए मैं ने यह फिल्म की.

आप का यहां तक पहुंचना कितना मुश्किल रहा?

मैं असम के एक छोटे से शहर तलबाड़ी की रहने वाली हूं. मेरा पूरा परिवार हमेशा कला के क्षेत्र से जुड़ा रहा है. मेरी मां मीरा बिस्वास एक नामचीन महिला रंगकर्मी हैं. जब मैं छोटी थी तो थिएटर ग्रुप ने असम में मुझे अभिनय के लिए बुलाया. मैं ने काम किया, सब को मेरा अभिनय पसंद आया. तब से मुझे इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली. पर मेरी मां हमेशा शिक्षा को अहमियत देती थीं. गे्रजुएशन के बाद उन्होंने मुझे दिल्ली के एनएसडी में 3 साल का कोर्स करने की अनुमति दी. वहां मैं ने पढ़ाई के दौरान कई बड़ेबड़े कलाकारों के साथ नाटकों में काम किया. काफी साल बाद एक दिन फिल्म निर्मातानिर्देशक शेखर कपूर एक शो के दौरान मुझ से मिले और ‘बैंडिट क्वीन’ का औफर दिया.

‘बैंडिट क्वीन’ में काम करने के बाद आप काफी चर्चा में रहीं, क्या आप को इस इमेज से बाहर निकलने में समय लगा?

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