‘‘सोचा ना था’’, ‘‘आहिस्ता आहिस्ता’’, ‘‘जब वी मेट’’, ‘‘लव आजकल’’, ‘‘राक स्टार’’, ‘‘काकटेल’’, ‘‘हाइवे’’, ‘‘तमाशा’’ जैसी फिल्मों के सर्जक इम्तियाज अली भी अब डिजिटल मीडियम के लिए एक सात मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘इंडिया टुमारो’ लेकर आए हैं. उनका मानना है कि बिजनेस यानी कि बाजार सिनेमा को बदल रहा है. इतना ही नही उनका मानना है कि सेक्सुल कंटेट से सिनेमा सफल नहीं हो सकता.

व्यापार की वजह से सिनेमा में बदलाव की आपकी जो सोच या समझ है, उसकी वजह क्या है?

- पिछले दिनों मुझे ब्रसेल्स में ‘ग्लोबल इंडिया बिजनेस समिट’ में निमंत्रित किया गया था. मैंने वहां पाया कि लोग डिजिटल बूम व डिजिटल सिनेमा के भविष्य को लेकर अति उत्साहित हैं. सभी का मानना था कि पूरे विश्व में अब 2जी से 4जी आ रहा है, जिसके चलते अब बड़ी फिल्में और लंबी लंबी फाइलें भेजना आसान हो रहा है. रिलायंस जैसी कई कंपनियों ने तो बहुत बड़ा नेटवर्क बनाना शुरू किया है. यह सब जानकर मेरे दिमाग में आया कि यदि ऐसा है, तो हम बड़ी आसानी से अपने मोबाइल पर तीन घंटे की फिल्म देख सकते हैं. अब स्वाभाविक तौर पर जितनी फिल्में बन रही हैं, उससे कहीं ज्यादा फिल्मों और मनोरंजन प्रधान सामग्री की जरूरत पडे़गी. तो उसे बनाने का काम तो हम फिल्मकारों को ही करना पड़ेगा. इसलिए मैं कह रहा हूं कि अब बिजनेस/बाजार सिनेमा को बदल रहा है.

देखिए,अब सिनेमा में जो बदलाव मेरी समझ में आ रहा है,वह यह है कि अब दर्शक अपने मोबाइल फोन पर सिर्फ तीन घंटे की फिल्म नहीं देखना चाहता, बल्कि अब वह चाहता है कि 5 से 15 मिनट की या एक घंटे लंबी अवधि वाली फिल्मों को मोबाइल पर देखे. यदि कोई दर्शक बस या लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहा है, तो हो सकता है कि उसके पास मोबाइल पर व्यस्त होने के लिए कुछ समय ही हो. इसी वजह से मेरे दिमाग में आया कि मेरे पास तमाम कहानियां ऐसी हैं, जिन्हें मैं अब तक नहीं बना पाया, क्योंकि यह कुछ कहानियां या विचार ऐसे हैं, जिन पर दो से तीन घंटे की फिल्म बनाना संभव नहीं है. पर यह विचार या यह कहानियां इतनी अच्छी हैं कि मैं इन्हें 5 मिनट से लेकर 15 मिनट की अवधि वाली फिल्म का रूप दे सकता हूं. यही सोच कर मैंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी ‘‘विंडो सीट फिल्म’’ के बैनर तले फिल्म ‘‘इंडिया टुमारो’’ बनायी है. इस फिल्म में मैंने इंसान की उम्मीदों की बात की है.

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