लोकतंत्र को एक बड़े राजनीतिक धोखे में बदल दिया गया है. “अपने देश की सरकार बनाने का अधिकार उस देश की आम जनता को है” को भले ही सैद्धांतिक रूप से मान्यता मिली हुई है, किंतु, अब ऐसा नहीं रह गया है. अमेरिका के राजनीतिक दल अलग-अलग बोतलों में एक ही शराब बेचते रहे हैं. मगर ‘शराब अलग है’ का चनावी ताम-झाम राष्ट्रपति चुनाव है. जिसमें वाल स्ट्रीट की निर्णायक भूमिका है. अब अमेरिकी राष्ट्रपति आम अमेरिकी से ज्यादा वहां का उद्योग जगत बनाता है, जिनके लिये व्हाईट हाउस और कांग्रेस अंतर्राष्ट्रीय बिचौलिया है. अमेरिका समर्थक कई देशों की सरकारें भी अपने हित में भारी खर्च करती हैं.
सउदी अरब के ‘क्राउन प्रिंस‘ (जो सउदी अरब का शाह भी बन सकता है) ने कहा है, कि ‘‘उनका देश सालों से रिपब्लिकन (पार्टी) और डेमोक्रेट (पार्टी) उम्मीदवारों को वित्तीय सहयोग देता रहा है.‘‘ वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव में सउदी अरब डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन के चुनावी प्रचार अभियान के खर्च का 20 प्रतिशत से ज्यादा खर्च उठा रहा है.
सउदी अरब के डिप्यूटी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का यह वक्तव्य 12 जून 2016 को ‘जार्डियन पेट्रा न्यूज एजेन्सी‘ में प्रकाशित हुआ. ‘मीडिल इस्ट आई न्यूज वेबसाइट‘ के अनुसार- इस रिपोर्ट को बाद में एजेन्सी के वेबसाइट से हटा दिया गया, हालांकि बाद में इसके मूल अरबी संस्करण को वाशिंगटन के इन्स्टीट्यूट फार गल्फ अफेयर्स ने पुनः प्रकाशित किया.
जार्डियन पेट्रा न्यूज एजेन्सी की रिपोर्ट के अनुसार प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा- ‘‘सउदी अरब हमेशा ही अमेरिका की दोनों ही-रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक- पार्टी को वित्तीय सहयोग देता रहा है. सउदी अरब साम्राज्य ने पूरे उत्साह के साथ हिलेरी क्लिंटन के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार अभियान के लिये 20 प्रतिशत खर्च को उपलब्ध करा रहा है, यह जानते हुए कि कई प्रभावशाली ताकतें इसके पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि वो एक महिला हैं.‘‘