‘कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फासले से मिला करो’. कहना गलत न होगा कि बशीर बद्र की शायरी की ये लाइनें सार्क सम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ के बीच सच होती दिखीं. नेपाल की राजधानी काठमांडू से 30 किलोमीटर दूर धुलीखेल में 26 नवंबर को शुरू हुआ 18वां सार्क शिखर सम्मेलन 27 नवंबर को खत्म हो गया पर पाकिस्तान के अक्खड़पन की वजह से सार्क देशों के बीच आपसी सहयोग और व्यापार की कोशिशें परवान नहीं चढ़ सकीं. प्रधानमंत्री बनने के बाद जिन मोदी ने पाकिस्तान की करतूतों को भुला कर गले मिलने के लिए नवाज को भारत बुला कर खातिरदारी की थी, उन्हीं से सार्क सम्मेलन में मोदी कटेकटे रहे.

दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ यानी दक्षेस का 18वां शिखर सम्मेलन भारत और पाकिस्तान की तनातनी का शिकार हो कर रह गया. सम्मेलन पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस उत्साह से पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथग्रहण समारोह में न्योता दिया था और नवाज ने जिस गर्मजोशी से मोदी का बुलावा कुबूल किया था, वह सार्क सम्मेलन में पूरी तरह से ठंडा दिखा. पाकिस्तान के अडि़यल रवैए की वजह से सार्क सम्मेलन में कोई ठोस फैसले नहीं लिए जा सके और सार्क के सदस्य देशों को यह बात साफ हो गई कि जब तक भारत और पाक के बीच के रिश्ते नहीं सुधरेंगे तब तक सम्मेलन का मकसद और घोषणापत्र पर कागजों से बाहर निकल पाना मुमकिन नहीं है.

सार्क शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन आखिरी समय में सार्क देशों के बीच बिजली व्यापार को ले कर समझौता हुआ, जिस ने सम्मेलन की लाज बचा ली. मोटर गाडि़यों की आवाजाही और रेल सदस्य देश इन समझौतों को आगे बढ़ाने को सहमत थे. पाकिस्तान ने इन करारों के प्रस्ताव से खुद को जहां अलगथलग रखा वहीं बिजली व्यापार को ले कर भी आंतरिक कार्यवाही पूरी न होने का हवाला दे कर आखिरी पल तक रोड़े अटकाने की पुरजोर कोशिश की. सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला ने घोषणापत्र पर सहमति बनाने की पूरी कोशिश की पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने उन की उम्मीदों और कोशिशों पर पानी फेर दिया. 

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