नेपाल में सरकार आखिरकार इस पर राजी हो गई है कि मधेसी और जनजाति पार्टियों की शिकायतों के मद्देनजर वह संविधान में संशोधन के लिए कदम उठाएगी. नए प्रस्ताव के अनुसार, प्रांत नंबर 5 का बंटवारा इस तरह होगा कि इसमें पहाड़ी जिलों को अलग किया जाएगा और मैदानी जिलों को जोड़ते हुए नवलपरासी से लेकर बर्दिया जिले तक एक प्रांत बनाया जाएगा.

प्रधानमंत्री पुष्प कमल दाहाल का मानना है कि इससे थारू की अलग राज्य की मांग पूरी हो सकेगी. वैसे, सरकार के लिए एक बड़ी रुकावट प्रमुख विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल है. यूएमएल अध्यक्ष केपी ओली ने संविधान संशोधन की जरूरत को लगातार खारिज किया है. लिहाजा प्रधानमंत्री यूएमएल के समर्थन के बिना संशोधन के लिए जरूरी दो-तिहाई बहुमत जुटाने की कोशिश कर रहे हैं. और यह संभव भी है, अगर कुछ छोटी पार्टियां और अभी एक हुई आरपीपी और आरपीपी-एन संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में वोट दे.

दूसरी तरफ, यूएमएल नेताओं ने देश भर में विरोध-प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी है. वैसे अगर यूएमएल को अपने साथ लाया जाता है, तो संभव है कि सरकार इस प्रस्ताव को थोड़ा उदार बनाने को मजबूर हो जाए. इससे आंदोलन करने वाली पार्टियों का विश्वास जीतने की बजाय उनके और उग्र होने का खतरा होगा. उस स्थिति में सरकार वही गलती कर रही होगी, जो उसने संविधान के पारित होने के समय किया था. इसके बरक्स, अगर संशोधन प्रस्ताव पर यूएमएल की कई सारी आपत्तियां हों, तो मधेसी पार्टियां भी इस पर सहमत नहीं होंगी.

फिलहाल, मोर्चा के एक बड़े धड़े ने प्रधानमंत्री दाहाल से वादा किया है कि अगर कुछ आरक्षण मिले, तो वह प्रस्ताव का समर्थन करेगी. हालांकि उपेंद्र यादव ने इसके विरोध की बात कही है, तो कुछ को इस प्रस्ताव में कूटनीतिक बू लग रही है. साफ है कि सरकार के लिए चुनौती बड़ी है. हालांकि मोर्चा का विरोध संविधान को लेकर है, इसलिए उचित यही है कि सरकार यूएमएल की बजाय उसकी मांगों पर गौर करे. उम्मीद है कि शायद यूएमएल और मोर्चा कोई बीच का रास्ता निकाल ले, ताकि देश अब और अनावश्यक टकराव से बचे.

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