नेपाल में अंतरराष्ट्रीय संबंधों और श्रम से जुड़ी संसदीय समिति ने विदेश मंत्रालय के रोजगार संबंधी विभाग को यह उचित निर्देश दिया है कि वह विभिन्न एजेंसियों द्वारा नेपालियों को बतौर सिक्योरिटी गार्ड विदेश भेजे जाने पर एक महीने के लिए रोक लगाए. असल में, यह पाया गया है कि ये एजेंसियां विदेश भेजने के नाम पर लोगों से सरकार द्वारा तय प्रति व्यक्ति दस हजार रुपये से कहीं अधिक की वसूली कर रही हैं.

करीब एक साल पहले भी सरकार ने 'फ्री वीजा फ्री टिकट' के अंतर्गत तय रकम से अधिक की वसूली करने के कारण मैनपावर एजेंसियों पर रोक लगाई थी. अब ताजा निर्देश के बाद वे तमाम प्रक्रियाएं बंद हो जाएंगी, जो सुरक्षा गार्ड्स को विदेश भेजने के लिए जरूरी सरकारी मंजूरी से जुड़ी हैं. इस मंजूरी का आवेदन मैनपावर एजेंसियां विदेश की आई मांग के अनुसार करती हैं. ऐसे में, जाहिर है कि अब कई देशों में सुरक्षा गार्ड की आवक प्रभावित होने की आशंका है.

एसआरएस ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड नामक एजेंसी द्वारा कामगार से आठ लाख रुपये की रिश्वत मांगे जाने का मामला सामने आने के बाद समिति ने यह निर्देश दिए हैं. हालांकि उस कामगार को पैसे वापस लौटा दिए गए हैं, मगर यह अस्थायी रोक इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ती कि क्यों नियम-कायदों और व्यावसायिक नैतिकता का इस कदर उल्लंघन होता है? कई कामगारों के साथ होने वाली धोखाधड़ी और कई मैनपावर एजेंसियों की धांधली से जुड़े सवाल भी यहां मुंह बाए खड़े हैं.

वैसे, मैनपावर एजेसियां तय रकम से अधिक की वसूली करने और कामगारों के लिए आदर्श परिस्थितियां मुहैया कराने के वादे तोड़ने के लिए बदनाम रही हैं. धोखाधड़ी का यह खेल सरकार के नियामक और सुधारात्मक उपायों की भी पोल खोलता है. बिना सरकारी अधिकारियों के मूक समर्थन के ये गतिविधियां कैसे संभव हैं? बहरहाल, इस तरह के अपराध में लिप्त मैनपावर एजेंसियों पर कार्रवाई होनी चाहिए, और उनका रजिस्ट्रेशन फौरन रद्द किया जाना चाहिए. हर वर्ष ऐसे कामों से लाखों रुपये कमाने वाली एजेसियों पर कुछ लाख के जुर्माने से यह आपराधिक खेल रुकेगा नहीं.  

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