एक दशक से धर्म की उन्मादी साजिश की मार झेल रहा इराक इन दिनों न सिर्फ फिर से उथलपुथल का शिकार है बल्कि हर गुजरते दिन के साथ ही अपने अस्तित्वध्वंस की तरफ बढ़ रहा है. इराक पर रहरह कर टूटने वाले कहर का नाम भले हर बार अलगअलग होता हो लेकिन कहीं न कहीं ये सब के सब होते धार्मिक दुराग्रह के विध्वंस ही हैं. कई सदियों से मध्यपूर्व में शियासुन्नी विवाद किसी न किसी रूप में उभरता रहा है. कई बार इस की शुरुआत दबेछिपे रूप में होती रही है, कई बार खुल्लमखुल्ला धार्मिक बर्बरता के रूप में.

दलदल में धंसता इराक

इराक का मौजूदा संकट, जो फिलहाल इतना बड़ा बन चुका है कि लगता है इराक का अस्तित्व ही मिट जाएगा, बेहद गुपचुप तरीके से शुरू हुआ. अतिवादी इसलामिक संगठन अलकायदा की एक शाखा इसलामिक स्टेट इन इराक ऐंड सीरिया यानी आईएसआईएस के नेतृत्व में 3 हजार से ज्यादा सुन्नी आतंकवादियों ने इराक पर जून के पहले सप्ताह के आखिर में धावा बोल दिया.

यह सबकुछ इतना गुपचुप तरीके और पूरी तैयारी से हुआ कि इराक सरकार अवाक् रह गई और बड़े पैमाने पर जिस हिस्से में यह संकट शुरू हुआ उस की जानकारी देश के दूसरे हिस्से तक भी न पहुंच सकी. यहां तक कि इराक में ही ज्यादातर लोगों को नहीं पता चला कि देश के एक हिस्से में आतंकवादी कितना जुल्म ढा रहे हैं.

आतंकियों ने अपने इस अभियान के फौरन बाद फेसबुक, ट्विटर और स्काइप जैसी सोशल नैटवर्किंग साइटों को जाम कर दिया. फोन लाइंस भी जाम कर दी गईं, जिस से कि एक इलाके से दूसरे इलाके तक आसानी से बात न पहुंचाई जा सके. हालांकि आतंकी पूरी तरह से सफल भी नहीं हुए फिर भी उन्होंने अपने इस अभियान से सरकार और सेना को भौचक कर दिया. सब से पहले आतंकियों ने राजधानी बगदाद से 60 किलोमीटर दूर बाकुबा शहर में कब्जा किया और बड़े पैमाने पर इराकी सेना के जवानों को या तो मार दिया या बंधक बना लिया.

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