इस्राइली राष्ट्रपति यूर्वेन रिवलिन की आठ दिवसीय भारत यात्रा से द्विपक्षीय संबंधों को गति मिलने की उम्मीद है. इस दौरान दोनों देशों के बीच व्यापारिक और रक्षा सौदों से संबंधित अनेक अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हो रहे हैं. राष्ट्रपति रिवलिन ने आतंकवाद के विरुद्ध भारत के रुख का समर्थन किया है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम में भी भागीदारी का भरोसा भी जताया है. वर्ष 1992 में दोनों देशों के बीच पूर्ण कूटनीतिक संबंध बहाल होने के बाद राष्ट्रपति रिवलिन भारत आनेवाले दूसरे इस्राइली राष्ट्राध्यक्ष हैं.

पिछले साल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और इस साल के शुरू में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस्राइल जा चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा भी जल्दी संभावित है. रक्षा खरीद, पर्यटन, कृषि तकनीक, शिक्षा और वाणिज्य के क्षेत्र में दोनों देशों की निकटता के सकारात्मक असर अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मंच पर भी परिलक्षित हो रहे हैं. इस्राइल ने सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के भारते के दावे का समर्थन किया है. वैश्विक आतंकवाद पर भारतीय पहल को कारगर बनाने के लिहाज से भी इस्राइली सहयोग महत्वपूर्ण है.

दोनों देशों के बीच फिलीस्तीन के मसले पर मतभेद हैं, पर इस्राइली राष्ट्रपति ने भी स्वीकार किया है कि मित्रता में असहमतियों की गुंजाइश भी होनी चाहिए. इस मसले पर अरब देशों की शंका दूर करने के लिए विदेश राज्यमंत्री एमजे अकबर कुछ दिन पहले ही फिलीस्तीन गये थे. भारत प्रारंभ से ही इस विवाद के शांतिपूर्ण निपटारे का पक्षधर रहा है.

बीते ढाई दशकों में इस्राइल और भारत बहुत करीब आये हैं. साथ ही, मध्य-पूर्व और मध्य एशिया के उन देशों के साथ भी भारत के रिश्ते मजबूत हुए हैं, जिनके संबंध इस्राइल के साथ तनावपूर्ण हैं. राष्ट्रपति रिवलिन की मौजूदा यात्रा के दौरान भी भारत ने जहां वैश्विक मानवता के दुश्मन आतंकवाद का मिलजुल कर मुकाबला करने का आह्वान किया है, वहीं द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी से आर्थिक वृद्धि करने की जरूरत को भी रेखांकित किया है. इस्राइल ने पानी की कम उपलब्धता के बावजूद तकनीकी कौशल से खेती में उल्लेखनीय विकास किया है. इस क्षेत्र में उसकी प्रगति से भारत लाभान्वित हो सकता है.

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