भारत और नेपाल के दशकों पुराने राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक रिश्तों पर पिछले 5-6 महीने से छाए काले बादल गहराते जा रहे हैं. भारत और नेपाल के शासक मामले को सुलझाने के बजाय आग में घी डालने का काम कर रहे हैं, जिस से चीन फायदा उठाने की जुगत में लगा हुआ है. मधेशियों के आंदोलन को ले कर भारत से नेपाल के बिगड़ते रिश्तों के बीच चीन नेपाल में अपनी पैठ बनाने की कोशिशों में लगा हुआ है और कुछेक मामलों में उसे कामयाबी भी मिल रही है. खास बात यह है कि नेपाल अब किसी भी तरह की मदद के लिए भारत की ओर देखने के बजाय चीन के सामने हाथ फैलाने लगा है और चीन भी बढ़चढ़ कर उस की मदद करने लगा है.

नेपाल में जारी हिंसा के बहाने नेपाल की नई सरकार चीन के साथ गुपचुप कारोबारी समझौता कर भारत के कारोबार को झटका देने की मुहिम में लगी हुई है. इस साजिश में चीन नेपाल का साथ दे कर अपना मतलब साधने में लग गया है. इस के तहत नेपाल के रसुआ जिला के टिमुरे इलाके में चीन ने ड्राईपोर्ट बनाने की तैयारी शुरू कर दी है.

नेपाल और चीन के बीच यह गुप्त करार अप्रैल 2015 में ही हो चुका है. नेपाल वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय की ओर से नेपाल इंटर मौडल यातायात विकास समिति के कार्यकारी निदेशक लक्षुमन बहादुर वस्नेत और चीन की ओर से आर्किटैक्चर रिकौनसंस ऐंड डिजायन इंस्टिट्यूट औफ तिब्बत औटोनोमस रिजन कंपनी के अध्यक्ष फुंझिन झाउल ने करार पर हस्ताक्षर किए हैं.

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