अगर औरतें एकजुट हो जाएं, तो वे बदलाव की बड़ी ताकत बन सकती हैं. पाकिस्तान जैसे मुल्कों में उनके बीच का बंटवारा सिर्फ उन्हीं लोगों को फायदा पहुंचाता है, जो पितृसत्तात्मक यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं. वुमेन्स पार्लियामेंटरी कॉकस की संस्थापिका और इस संगठन की मौजूदा प्रमुख के बीच पिछले बुधवार को जैसी कटुता दिखी, उसने महिला सांसदों के इस फोरम के भविष्य को लेकर कई चिंताएं पैदा कर दीं.

नेशनल असेबंली की अपनी जोशीली तकरीर में पीपीपी सांसद और वुमेन्स पार्लियामेंटरी कॉकस की सरपरस्त डॉक्टर फहमीदा मिर्जा ने हाल के महीनों में इस संगठन की अनदेखी पर गहरी बेचैनी जाहिर की. उन्होंने अपनी बातों से यह भी संकेत किया कि कॉकस की इस हालत के लिए इसके मेंबरान के निजी मुकाबले जिम्मेदार हैं.

वुमेन्स पार्लियामेंटरी कॉकस की सेक्रेटरी और पीएमएल-नवाज की सांसद शाइस्ता परवेज ने कॉकस की कामयाबी की दुहाई देते हुए मुखालिफ जमातों की सांसदों पर तंज कसा कि वे इस संगठन की मदद नहीं कर रही हैं. पिछले कई बरसों से वुमेन्स पार्लियामेंटरी कॉकस के बैनर तले महिला सांसद जैसी एकजुटता दिखाती आ रही हैं, वह अब एक अफसोसनाक और आत्मघाती मोड़ लेती दिख रही है, जिससे इस संगठन की साबित ताकत के खत्म होने का अंदेशा पैदा हो गया है.

पाकिस्तानी संसद के इतिहास की जो कुछ मिसाल देने लायक चीजें हैं, उनमें से एक साल 2008 में डॉक्टर मिर्जा के नेशनल असेंबली की स्पीकर चुने जाने के बाद गठित यह संगठन भी है. साल 2008 के बाद कुछ वर्षों में अभूतपूर्व तरीके से औरतों की खैरख्वाही वाले जो कई आईन बने, उनके पीछे इस संगठन का अहम रोल रहा है. इनमें साल 2010 का छेड़छाड़-विरोधी कानून शामिल है. इसी तरह, तेजाबी हमले से मुतल्लिक पाकिस्तान पिनल कोड में बदलाव का बिल था, और पुरानी दकियानूस रवायतों पर रोक से जुड़े कानून थे. मौजूदा वुमेन्स पार्लियामेंटरी कॉकस को इसे तंग सियासी मोहरा बनाने की बजाय आगे ले जाना चाहिए. उन्हें सत्ता के गलियारे में औरतों की आवाज बुलंद करनी चाहिए.

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