भारतबंगलादेश के बीच सीमा विवाद का अब अंत होने जा रहा है. संसदीय समिति द्वारा हरी झंडी दिखा दिए जाने के बाद छिटमहल विनिमय के मद्देनजर संसद में संविधान संशोधन बिल पेश कर दिया गया है. वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी छिटमहल विनिमय को ले कर अपनी आपत्ति वापस ले ली है. इस मामले में अब हर तरह का गतिरोध खत्म हो गया है. इस की भनक मिलते ही भारतबंगलादेश के छिटमहल के बाशिंदों को उम्मीद की एक किरण नजर आई है. इसीलिए जिस दिन ममता बनर्जी ने कूचबिहार से सटे काजलदिघि के पाटग्राम नामक गांव में इस की घोषणा की, उस दिन को बंगलादेश में अवस्थित भारतीय छिटमहल और भारत में अवस्थित बंगलादेशी छिटमहल इलाके के लोगों ने उत्सव की तरह मनाया.
छिटमहल भारत बंगलादेश की सीमा पर एक ऐसा भूखंड है जहां आबादी है, पर उस का अपना कोई देश नहीं. दरअसल, इन्हें न तो बंगलादेश की नागरिकता मिली हुई है, न ही भारत की. इस लिहाज से यहां बसे नागरिकों का अपना कोई देश नहीं है. नागरिकता के परिचय के बगैर यह पूरी आबादी बहुत ही जरूरी नागरिक सुविधाओं से भी 68 सालों से वंचित है. भारतबंगलादेश के बीच यह सीमा विवाद दुनिया के सब से जटिलतम सीमा विवाद के रूप में जाना जाता है.
क्या है मामला
कूचबिहार के राजा और रंगपुर के फौजदार मन बहलाने के लिए अकसर पाशा खेला करते थे. उन दिनों राजारजवाड़ों के इस खेल में अपनेअपने अधीन गांवों को दांव पर लगाने का चलन था. रंगपुर और कूचबिहार के राजा भी यह किया करते थे. इस के चलते कूचबिहार के राजा की प्रजा कभी रंगपुर फौजदार की प्रजा बन जाती थी और कभी रंगपुर के फौजदार की प्रजा कूचबिहार के राजा की प्रजा हो जाया करती थी. पासों के खेल के दांव के साथ प्रजा की हैसियत अकसर बदल जाया करती थी.भले ही अचानक रातोंरात उन की नागरिकता बदल जाती हो पर वे कूचबिहार या रंगपुर में किसी एक राजा की प्रजा कहलाते थे लेकिन आजाद भारत और बंगलादेश के आसपास के इस भूखंड की जनता आज किसी भी क्षेत्र के अधीन नहीं है, यानी यहां बसने वाली जनता को किसी भी देश की नागरिकता हासिल नहीं है. इस पूरे इलाके में डाक्टर या अस्पताल या स्कूलकालेज नहीं हैं. यहां तक कि कोई पुलिस स्टेशन भी नहीं है. ऐसे में राशन से ले कर अन्य नागरिक सुविधाएं भी मुहैया नहीं हैं.