कविता जब नईनई दिल्ली आई तो शुरू के दिनों में अपनी एक सहेली नीना के साथ होस्टल में बतौर गेस्ट रही पर इसी के साथ उस ने अपने लिए एक घर ढूंढ़ना भी शुरू कर दिया. वह किसी को जानती तो थी नहीं और न ही उस की सहेली के पास अपनी नौकरी के चलते इतना समय था कि वह उस के साथ घर ढूंढ़े. इसलिए नीना ने इस सिलसिले में एक प्रौपर्टी डीलर से बात की और उसे अपना बजट बताते हुए किस तरह का घर उसे चाहिए, यह भी बता दिया.

नीना छोटे शहर से आई थी और उस ने दिल्ली में आएदिन लड़कियों के साथ होने वाले हादसों के बारे में काफी सुन रखा था इसलिए जब प्रौपर्टी डीलर के साथ उसी की गाड़ी में घर देखने जाने की बात आई तो उस का मन तमाम शंकाओं से भर उठा. जैसेतैसे हिम्मत कर वह प्रौपर्टी डीलर की गाड़ी में बैठ कर घर देखने गई, उसे घर, जगह पसंद आ गई लेकिन यह जान कर हैरानी हुई कि मकान मालिक 3 महीने का किराया एडवांस मांग रहा है, साथ ही डीलर को भी 1 महीने के किराए के बराबर की रकम देनी पड़ेगी. खैर, इस के अलावा उस के पास कोई चारा नहीं था.

दिल्ली या देश के प्रमुख महानगरों में आने वाली हर नई युवती या युवक को इसी तरह का अनुभव होता है. नए शहर में नए लोगों के बीच तालमेल बैठाने के साथसाथ एक अच्छा कमरा ढूंढ़ना भी बहुत जरूरी हो जाता है. लड़कों के मुकाबले लड़कियों के लिए एक ढंग का कमरा ढूंढ़ना तो और भी मुश्किल काम है.

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