एक दौर ऐसा भी था जब इंजीनियर बनने की हसरत हर किसी की पूरी नहीं होती थी. लेकिन शिक्षा में आए व्यावसायिक परिवर्तन के अंतर्गत खुले प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों ने इंजीनियरिंग क्षेत्र की तसवीर बदल डाली है. देश के हर राज्य में खुल चुके प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेजों में स्टूडैंट्स इंजीनियर तो बन रहे हैं लेकिन इस राह में अड़चनें भी कम नहीं हैं. पड़ताल कर रहे हैं शैलेंद्र सिंह.
अब से 10-12 साल पहले किसी भी युवा के लिए इंजीनियर बनना एक सपने जैसा होता था. देश में इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या बहुत कम थी. सरकारी कालेजों में सीटें कम होने से इंजीनियर बनने वाले युवाओं के सामने मैरिट रैंक में आने का संकट होता था. सीटें कम होने से मैरिट की रैंक इतनी ऊंची होती थी कि आम युवाओं के इंजीनियर बनने का सपना अधूरा ही रह जाता था. दक्षिण भारत के कुछ प्रदेशों में प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज खुलने लगे थे. इन में प्रवेश लेने के लिए पढ़ने वाले को महंगा डोनेशन देना पड़ता था. ऐसे में सामान्य परिवारों के बच्चों का इंजीनियर बनने का सपना अधूरा रह जाता था.
साल 2000 के आसपास से इंजीनियरिंग शिक्षा में प्राइवेट स्कूलों का दखल बढ़ा. उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब में इंजीनियरिंग और मैनेजमैंट की पढ़ाई कराने के लिए बड़ी संख्या में प्राइवेट स्कूल खुलने लगे. इस के चलते युवाओं को इंजीनियरिंग में कैरियर बनाना सरल होने लगा. अब 4 साल की पढ़ाई की 8 लाख के करीब फीस चुका कर युवाओं को अपने सपने पूरे करने का मौका मिल गया.
उत्तर प्रदेश में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को संचालित करने के लिए साल 2000 में उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय यानी यूपीटीयू की स्थापना हुई. यह एशिया कासब से बड़ा तकनीकी विश्वविद्यालय है. इस के अंतर्गत 400 से अधिक इंजीनियरिंग कालेज और 600 से अधिक मैनेजमैंट कालेज हैं. यहां पढ़ाए जाने वाले कोर्सेज में 2 लाख सीटें हैं.
यूपीटीयू हर साल इन कालेजों में प्रवेश देने के लिए परीक्षा का आयोजन करता है. हर साल ढाई से 3 लाख के बीच छात्र इस परीक्षा का हिस्सा बनते हैं. इस के बाद प्रवेश परीक्षा देने वालों द्वारा हासिल किए गए नंबरों के आधार पर रैंक बनाई जाती है. रैंक के अनुसार छात्रों को इंजीनियरिंग कालेजों में प्रवेश दिया जाता है. अच्छी रैंक लाने वाले ज्यादातर छात्र सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लेना चाहते हैं. इन में कानपुर का एचबीटीआई, लखनऊ का आईईटी और गोरखपुर का मदनमोहन मालवीय कालेज सब से ज्यादा पसंदीदा माने जाते हैं. इस के अलावा कुछ प्राइवेट कालेजों की पहचान भी अच्छे कालेजों के रूप में होती है.
खाली रह जाते हैं बेकार स्कूल 
इंजीनियरिंग कालेजों के निजीकरण ने टैक्निकल और मैनेजमैंट एजुकेशन हासिल करने वाले युवाओं की राह सरल कर दी. जबकि दूसरी ओर कुछ नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों ने  प्राइवेट स्कूलों को अपनी कमाई का जरिया बना लिया. उन्होंने सरकारी सहायता और मनमानी फीस लेने के लिए इंजीनियरिंग कालेज खोलने शुरू कर दिए. स्कूलों में पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं होता. छात्रों के लिए इनोवेटिव प्रोग्राम नहीं चलाए जाते. ऐसी हालत में प्रदेश के छात्रों का मोह ऐसे कालेजों से भंग होने लगा. ऐसे में उत्तर प्रदेश के छात्र अब अपनी पढ़ाई के लिए मध्य प्रदेश, नोएडा और दक्षिण भारत के राज्यों में खुले कालेजों में पढ़ने जाने लगे हैं. उत्तर प्रदेश के कुछ प्राइवेट कालेजों में अच्छी पढ़ाई होती है. इन में आज भी प्रवेश के लिए मारामारी होती है जबकि अच्छी पढ़ाई न कराने वाले कालेज खाली पडे़ होते हैं. ऐसे स्कूल अब अपने कालेजों को बेचने की जुगत में हैं.
ऐसे बेकार स्कूलों के कारण ही इंजीनियरिंग की पढ़ाई पर सवालिया निशान लगने लगे हैं. इस बात को ये प्राइवेट कालेज भी महसूस करने लगे हैं.
यूपीटीयू के वाइस चांसलर प्रोफैसर आर के खंडेलवाल कहते हैं, ‘‘देश में इंजीनियरिंग की मांग बहुत है. जिन छात्रों में अपना कौशल होगा वे अपनी जगह बना लेते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि छात्रों के बीच इनोवेटिव एजूकेशन को लोकप्रिय बनाया जाए.’’
प्रोफैसर आर के खंडेलवाल की पहल पर यूपीटीयू के स्कूल इनोवेटिव एजुकेशन देने की योजना तैयार कर रहे हैं. अगस्त 2014 में यूपीटीयू के कालेजों में नए तरह की इनोवेटिव एजुकेशन को ले कर स्कीम तैयार की जा रही है. इस से छात्रों को अपना कैरियर बनाने में मदद मिल सकेगी.
अच्छी गुणवत्ता, बेहतर भविष्य
लखनऊ मौंटेसरी इंटर कालेज के प्रिंसिपल ए बी सिंह कहते हैं, ‘‘इंजीनियरिंग कालेजों को अपने एजुकेशन की गुणवत्ता को बेहतर करने का प्रयास करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो न केवल कालेजों को नुकसान होगा बल्कि इंजीनियरिंग पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ भी होगा.
उत्तर प्रदेश के प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज यूपीटीयू से तय की गई फीस जरूर लेते हैं पर होस्टल और दूसरे मदों के जरिए वे उतनी ही फीस ले लेते हैं जितनी बाहरी प्रदेशों के कालेज लेते हैं. ऐसे में छात्र उत्तर प्रदेश के स्कूलों को छोड़ कर बाहरी स्कूलों में पढ़ाई के लिए जाने लगे हैं.’’
एक अभिभावक महेश मिश्रा कहते हैं, ‘‘प्राइवेट कालेजों में बहुतों के यहां अच्छी बिल्ंिडग दिखती है पर कालेज में छात्रों को पढ़ाने के लिए बेहतर टीचिंग स्टाफ नहीं है. प्रयोगशालाएं नहीं हैं. ऐसे में छात्रों को नया सीखने को नहीं मिलता है.’’
दरअसल, उत्तर प्रदेश के ज्यादातर प्राइवेट कालेजों की हालत बहुत खराब है. वे फीस तो बहुत लेते हैं पर पढ़ाई की क्वालिटी पर ध्यान नहीं देते. ऐसे में कालेजों ने इंजीनियरिंग के अलावा दूसरे विषयों के कोर्स भी शुरू कर दिए हैं. इस के बाद भी ज्यादातर स्कूल ऐडमिशन के लिए छात्रों को तरसते रहते हैं. ऐसे कालेज एडमिशन के समय अपने कालेज का नाम आगे लाने के लिए महंगे प्रचारप्रसार का इस्तेमाल करने लगे हैं. आज के दौर में छात्रों को कालेज की सचाई का पता आसानी से चल जाता है. ऐसे में छात्र खराब स्कूलों की ओर रुख नहीं करना चाहते.

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