बौडी लैंग्वेज हमारे विचारों के आदानप्रदान में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. कहते हैं कि ताश के खिलाड़ी अपनी चाल तय न कर पाने की वजह से एकदूसरे की ओर ताक लगाए बैठे रहते हैं, ताकि किसी भी तरह उन्हें अपने अगले दांव का सूत्र मिल जाए. इसी तरह से हमारे व्यक्तित्व की चाबी है बौडी लैंग्वेज, जो हमारी अंदरूनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने में काफी कारगर होती है.

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, शब्द हमारी बातचीत का सिर्फ एकतिहाई हिस्सा हैं और जब तक शब्दों के साथ चेहरे की भंगिमाएं और हावभाव शुमार न हों, बातचीत अधूरी रह जाती है. जीवन में किसी भी इंसान की वर्तमान मानसिक स्थिति जानने के लिए उस के शब्दों और शरीर के विभिन्न अंगों की गतिविधियों को सूक्ष्मता से परखना होता है. ऐसे बहुत से शारीरिक संकेत हैं जिन का अर्थ काफी सीक्रेट होता है और वे हमें सामने वाले के प्रति और ज्यादा चौकन्ना कर देते हैं.

1.    शरीर के सभी अंग किसी तरह नकारात्मक या सकारात्मक संकेत देते हैं. इस में चेहरे को सब से ज्यादा अहमियत दी जाती है. सिर का हिलाना यानी किसी चीज के लिए सहमति देना होता है या फिर धैर्य रखना. सिर ऊपर उठा कर चलना या ऊपर की ओर सधी हुई नाक घमंड का द्योतक होता है या फिर एकांतता में यकीन करने का. कांपते होंठ दिल पर गहरी चोट पहुंचने का संकेत देते हैं.

2.    चमकती हुई आंखें, डरावनी आंखें, गहरी आंखें, गुस्से से भरी आंखें, इतने सारे भावों वाली होने के कारण आंखों को मन का आईना भी कहा जाता है. बातचीत के दौरान हम एकदूसरे की आंखों में जितना देखते हैं, संबंध उतने ही मजबूत बनते हैं. बंद आंखें सीक्रेसी या आराम करने की इच्छा जताती हैं. झुकी हुई, इधरउधर निहारती हुई आंखें कुछ छिपाने की कोशिश करती हैं. घूरती हुई आंखें किसी की आक्रामक प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करती हैं. अधखुली और बुझी हुई सी आंखें ऊब जाने की दशा जाहिर करती हैं. बातचीत के दौरान आंखें मिला कर बात न करना दर्शाता है कि व्यक्ति असुरक्षा का शिकार है या फिर लापरवा है.

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