मैं अपने महल्ले का स्थापित लेखक हूं. मेरे महल्ले में दूसरे महल्ले का लेखक पर भी नहीं मार सकता. महल्ले के शादी के निमंत्रण कार्डों से ले कर श्राद्ध के कार्डों तक का मैटर जब तक मेरे द्वारा पास नहीं कर दिया जाता तब तक वह एक कदम भी आगे नहीं बढ़ता. शादी हो जाए तो हो जाए, श्राद्ध हो जाए तो हो जाए. कल वे अपने मुंडन के कार्ड का मैटर फाइनल करवाने आए थे, आज उन का बेटा आ धमका. आते ही हांफते हुए बोला, ‘‘अंकल, अंकल, पापा पूछ रहे हैं कि आप के पास समय है? वे आप से कुछ जरूरी टौपिक पर बात करना चाहते हैं.’’ तो उस के मुंह से यह सुन मैं चौंका.

मित्रों, सच तो यह है कि अब मेरी लेखकाई से तंग आ मेरी सात फेरों वाली कर्मपत्नी तक मुझ से बात करना नहीं चाहती. हीरे का मोल लुहार क्या जाने. हीरे का मोल तो जौहरी को ही पता होता है. पर आज वैसे जौहरी कहां बचे हैं. हौलमार्क के नाम पर पता नहीं क्याक्या बेचे जा रहे हैं. मैं ने उस से उस के पिताश्री को आधे घंटे बाद आने को कहा तो वह चैन की सांस ले अपने घर को लौटा. उन के मुंडन के कार्ड का मैटर आननफानन फाइनल किया तो वे चौंके, ‘‘हे मेरे प्रिय लेखक, जिस द्रुतगति से तुम ने मेरे मुंडन का मैटर फाइनल किया है, उस से मुझे शक है कि यह मैटर मुंडन का ही है न? कहीं मेरे श्राद्ध का तो नहीं?’’ उन के यह कहने पर मुझे बहुत गुस्सा आया पर मैं चुप रहा क्योंकि पिछली बार ऐसा ही अनर्थ मेरे हाथों से हो चुका था. जन्मदिन के कार्ड में श्राद्ध का मैटर निकल गया था मेरे हाथों से.

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