इन दिनों शौचालय का चिंतन चहुंओर चलायमान है. मदारी से ले कर मंत्री तक हर कोई अपनेअपने ढंग से शौचालय पर बोल रहा है. दूरदर्शी दुलहनों ने तो अपनी बरातें तक इसलिए धड़ाधड़ लौटा दीं कि उन की होने वाली ससुराल में शौचालय की व्यवस्था नहीं थी. शौचालय की सोच के कारण अब समाज में किस प्रकार के दृश्य देखने को मिलेंगे, आइए होते हैं रूबरू-

वैवाहिक विज्ञापन कुछ यों होंगे कि

‘5 फुट 10 इंच, 25 वर्ष, 7 लाख रुपए वार्षिक आय एवं शानदार शौचालय वाले वर हेतु वधू चाहिए’. तो कन्याओं के पिता भी क्यों चूकेंगे. वे विज्ञापन यों देंगे कि, ‘सुंदर, सुशील एवं गृहकार्य में दक्ष कन्या हेतु अच्छी आय और स्वच्छ शौचालय वाला वर चाहिए. अत्याधुनिक शौचालय वाले वर को प्राथमिकता दी जाएगी.’ लड़के वाले लड़की वालों से कहते मिलेंगे कि, ‘भई, हम आप से एक बात कहना तो भूल ही गए.’ जब लड़की वाले घबरा कर उन की तरफ देखेंगे तो वे हंसते हुए कहेंगे, ‘न न न, हमें दहेज में कुछ भी नहीं चाहिए. बरातियों के लिए शौचालय की व्यवस्था शानदार होनी चाहिए.’ दूल्हेराजा कहीं भी अपनी राजहठ लड़की वालों को इसलिए नहीं दिखाएंगे कि उन्हें दहेज में चमचमाती कार चाहिए, स्वागत में सोने की चेन, कीमती स्मार्टफोन या मुंहमांगी नकद राशि चाहिए बल्कि वे इसलिए नाराज हो जाएंगे कि उन के दोस्तों की सेवा में शानदार शौचालय उपलब्ध नहीं कराए गए.

यदि समझदार कन्याएं गलती से ऐसे घरों में ब्याह दी जाएंगी जहां शौचालय से पीढ़ी दर पीढ़ी दुश्मनी चली आ रही हो तो वे मुंहदिखाई में बुद्धिमत्ता दिखाते हुए शौचालय ऐज ए गिफ्ट मांग लेंगी. किंतु जिद्दी किस्म की नववधुएं शौचालयविहीन घरों में धोखे से ब्याही जाने पर अपनी पहली ही सुबह ससुराल की इज्जत की वाट लगा देंगी. और अपने साथ हुई इस धोखाधड़ी के लिए अपने सासससुर के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा देंगी. समय के हिसाब से बेटी की विदाई के वक्त बजने वाले फिल्मी गीतों में भी परिवर्तन हो जाएंगे और इस प्रकार के गीत लिखे जाने लगेंगे कि, ‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझ को सुखी संसार मिले. मायके की कभी न याद आए, ससुराल में, शौचालय चार मिलें.’

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