धर्मपत्नी का खुश होना जायज था. कहावत भी है- ‘मायके से कुत्ता भी अगर आता है तो प्रिय लगता है.’ लेकिन यहां तो हमारी सासूजी आ रही  कभीकभी सोचता हूं राजधानी में रहना भी सिरदर्द से कम नहीं होता है. अधिकतर रिश्तेदार नेताओं से काम निकलवाने यहां आते रहते हैं. अब सब से रिश्तेदारी या दोस्ती तो है नहीं, लेकिन मना कर के संबंध थोड़े ही खराब करेंगे. मेहमान आए तो उन की देखरेख, नाश्ता, भोजन का इंतजाम करने में हालत पतली हो जाती है. पत्नी मेरे मायके से आए मेहमानों पर मुंह फुला लेती हैं. उन के मायके वालों पर मेरा बजट बैठ जाता है. किंतु किस से शिकायत करें? और कब तक रोना रोएं? मेरी बहुत ही मोटी सासूजी के आने की खुशी पत्नी के चेहरे पर ऐसी खिल रही थी मानो बरसात के बाद इंद्रधनुष खिला हो. मुसीबत कभी कह कर तो आती नहीं है और हुआ भी ऐसा ही. हमारी सासूजी गांवकसबे की हैं. सो, बाथरूम में जो पांव फिसला तो स्वयं को संभालने के लिए नल को पकड़ा. नल पाइप सहित हाथों में आ गया. कमरे में मेरा मतलब कमर में हलकी सी मोच आ गई. एकदो प्लास्टिक की बाल्टियां उलट गईं. पत्नीजी ने घबरा कर पूछा, ‘‘अम्मा, क्या हुआ?’’

‘‘कुछ नहीं बिटिया, बाल्टी गिर गई थी.’’

‘‘इतनी जोर से आवाज आई थी?’’

‘‘बाल्टी के साथसाथ मैं भी थी,’’ दर्दभरी आवाज सासूजी की थी.

‘‘दरवाजा तोड़ते तो 5-7 हजार का नकद नुकसान होता, इसलिए पत्नीजी ने निवेदन किया तो सासूजी कराहते हुए बाहर आईं.

हमें भी धर्मपत्नी ने चीख कर बुला लिया था. हमारी सासूजी लंगड़ाती हुई बाहर आईं. वे परेशान कम, पत्नी अधिक परेशान ?थीं. सासूजी पलंग पर लेट गईं. पत्नी ने हम से कहा, ‘‘डाक्टर को यहीं बुला लें या अस्पताल ले चलें?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...