दो प्यारी सी आंखें, जिन में बड़े ही यत्न से लगाया गया आईलाइनर यानी कि काजल, उस के ऊपर आई कलर व आईशैडो, तराशी हुई भवें और बड़ी ही सफाई से लगाया गया मस्कारा ताकि देखने वाले को ऐसा भ्रम हो कि कुछ कृत्रिम नहीं, सब प्राकृतिक खूबसूरती है. इतने रंगरोगन लगाए जाने के कारण श्रीमतीजी की आंखें इतनी कजरारी व खूबसूरत बन गई थीं कि मुझ जैसा कवि कल्पनाओं से दूर रहने वाला प्राणी भी उन नयनों के चक्कर में चकराने लगा. जैसे ही मैं ने उन के नयन सागर में गोते लगाने की सोची, तभी मेरे कानों में चिरपरिचित सी आवाज आई, ‘‘गोलू के पापा, पढि़ए न क्या लिखा है?’’ श्रीमतीजी टीवी में एक नई फिल्म के ट्रेलर में आ रहे कलाकारों के नामों के बारे में जानने को उत्सुक थीं. नाम बड़ी जल्दीजल्दी आजा रहे थे.

संयोगवश मैं उसी समय औफिस से आ कर घर में घुसा ही था और आदतन चश्मा मेरी आंखों पर चढ़ा था. जब तक वे गोलू को आवाज देतीं, तब तक नाम चला जाता और ऐसे मौकों पर बेटी आस्था पहले से ही गायब हो जाती. वैसे भी, बच्चों को अपने कंप्यूटर के आगे हिंदी फिल्मों में कोई रुचि नहीं. ऐसे में बलि का बकरा मैं ही बनता.

‘‘श्रीमतीजी, कितनी बार कहा कि डाक्टर के पास जा कर अपनी आंखों का चैकअप करवा लो पर तुम्हारी समझ में बात कहां आती है? छोटेछोटे अक्षर तुम से अब पढ़े नहीं जाते. ऐसे में तुम्हें परेशानी हो सकती है.’’ हमेशा की तरह इस बार भी वे मेरी बात को एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकालते हुए बोलीं, ‘‘अरे, पहले नाम पढ़ कर बताओ कि कौनकौन इस फिल्म में हैं? आजकल अच्छी फिल्में बनती कहां हैं?’’

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