शेयर ट्रेडिंग और सेंसैक्स की उछाल देख कर मणिचंद ने पैसा लगा कर थोड़ा सा मुनाफा क्या कमाया कि खुद को शेयर बाजार का ‘शेर’ ही समझने लगे. लेकिन मणिचंद को असली झटका मिलना तो बाकी था. ऐसा झटका जिस ने उन के तमाम सपनों को चकनाचूर कर दिया.

मणिचंद आज बहुत खुश हैं. खुशी की वजह है कि वे बड़ीबड़ी प्रौपर्टीज को खरीदने, उन्हें मेंटेन करने से बच गए हैं. कैसे, यह जानने के लिए आप को 1 महीने पहले के फ्लैशबैक में जाना पड़ेगा.

तो हुआ यों कि उन्होंने कंप्यूटर के माध्यम से ‘इंट्रा डे टे्रडिंग’ करना सीख लिया और पहले ही दिन उन्हें 2 हजार रुपए का फायदा हुआ. वैसे शाम को जब स्टेटमैंट आया तो इस 2 हजार रुपए में से 300 रुपए टैक्स, चार्ज, सरचार्ज आदि के कट गए थे और उन्हें मिलने थे 1,700 रुपए. पर यह भी घाटे का सौदा नहीं था. और घाटे का क्या, यह तो मुहावरे की भाषा हुई. इस में तो फायदा ही फायदा था. यदि मुहावरे की ही भाषा में कहें तो हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए. मात्र 30 हजार रुपए सिक्योरिटी टे्रडर के पास लिएन (शेयर के सौदों के लिए जमा रकम) रख कर वे 1,700 रुपए कमा रहे थे और वह भी पहले ही दिन.

उन्होंने फैसला किया कि आगे चल कर वे लिएन की रकम बढ़ा देंगे और साथ ही टे्रडिंग का वौल्यूम भी बढ़ाएंगे. उन के हिसाब से वे रोज 10 हजार रुपए और महीने में तकरीबन 2 लाख 20 हजार रुपए कमा लेंगे. यह हिसाब लगाने में उन्होंने बड़ी ही उदारतापूर्वक हफ्ते में 5 ही दिन जोड़े थे जिन दिनों शेयर बाजार खुले रहते हैं. इस तरह साल में रकम हो जाएगी करीब 25 लाख रुपए. फिर तो प्लौट खरीदा जाएगा, बिल्ंिडग बनेगी, खूब मौजमस्ती से जिंदगी कटेगी. कार भी नए मौडल की और कीमती ही आएगी. आखिर, आय के मुताबिक ही स्टैंडर्ड औफ लिविंग होना चाहिए न.

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