बीवी से परेशान तो तब से ही हूं जब से उस के साथ सात फेरे लिए थे पर आज जब औफिस से थकाहारा घर पहुंचा तो द्वार पर बीवी मुसकराती दिखी तो हैरानी हुई. लगा, जैसे आज मैं अपने घर के द्वार पर नहीं, गलती से किसी और के द्वार पर आ खड़ा हो गया हूं. जब आंखों से चश्मा हटा कर देखा तो मुझे यकीन हो गया कि मैं अपने ही घर के द्वार पर आ खड़ा हूं. बीवी पहली बार द्वार पर स्वागत के लिए आतुरता से स्वागत की मुद्रा में दिखी तो मेरी प्रसन्नता की सीमा न रही. अरे भाईसाहब, यह क्या हो गया, क्या सूरज आज पश्चिम की जगह पूरब में अस्त हो रहा होगा? पूरब की ओर देखा तो वहां कोई सूरज न दिखा.

बीवी पीछे की ओर हाथ किए कुछ पकड़े हुए थी. मैं ने सोचा कि आज मेरे स्वागत के लिए फूलों का गुलदस्ता लिए होगी. इस खुशी में मेरा स्वागत कर रही होगी कि मैं आज भी औफिस से सकुशल लौट आया हूं.

‘‘आ गए आप?’’

‘‘रोज ही तो आता हूं. आज के आने में क्या खास है,’’ मैं अंदर जाने को हुआ तो उस ने रोकते हुए कहा, ‘‘रुको तो जरा, इतनी भी क्या जल्दी है. पहले इन कागजों में दस्तखत करो, फिर आराम से अंदर आओ.’’

उस ने पीछे किए हाथों में पकड़े कागज मेरी ओर किए तो मैं अंदर तक कांप गया. पगली, अब ये कौन से कागजों पर दस्तखत करवाने पर तुल गई? वैसे अंदर की बात कहूं, आज तक बीवी ने मेरे आगे जो भी कागज रखे हैं, मैं ने आंखें, दिमाग सब बंद कर उस पर दस्तखत किए हैं. अब ये नए कागज कौन से...

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...