पहला सीन

दक्षिण भारत के एक मशहूर मंदिर के सामने लोगों की लंबी लाइन लगी थी. सभी अपने पाप धोने या पाप करने से पहले ही लाइसैंस मांगने के लिए खड़े थे. मैं भी पिछले 3 घंटे से धूप में डटा हुआ था. लेकिन अगले 4 घंटे तक कामयाबी मिलने की कोई उम्मीद नहीं लग रही थी.

मुझे लग रहा था कि जितनी मेहनत यहां खड़े हो कर मूर्ति देखने के लिए कर रहा हूं, उतनी अगर हिमालय पर जा कर करता, तो अब तक शायद सीधे किसी देवता से मुलाकात हो गई होती.

अचानक ही मेरे एक दोस्त नजर आ गए. उन्होंने मुझे इस बात का अहसास दिलाया कि मैं पहले दर्जे का बेवकूफ हूं.

दोस्त ने मुझे बताया कि आजकल देवता भी उसी को जल्दी दर्शन देते हैं, जो ज्यादा भोग लगाता है.

मैं ने पलट कर देखा, तो सचमुच ही थोड़ी दूरी पर 5 सौ रुपए वालों की बुकिंग चल रही थी और कहां हम फटीचर जैसे लोग मुफ्त में ही देवता को देख लेना चाहते थे.

मंदिर में तैनात पंडे बेहद लगन से पैसे वालों को देवता का दीदार करा रहे थे. शायद देवता को भी उन से ही मिलने

की जल्दी रहती हो. मैं ने भी एक बार जाने की हिम्मत की, लेकिन रुपयों का मोह देवता की भक्ति से ज्यादा बड़ा निकला.

तभी पता चला कि मंदिर के दरवाजे बंद हो गए हैं. अब 4 बजे खुलेंगे. मैं ने गहरी सांस ली. ऊपर देखा और आसमान वाले से पूछा, ‘मेरा नंबर कब आएगा?’

दूसरा सीन

सुबहसुबह बीवी द्वारा काफी धमकाए जाने के बाद आखिरकार मैं अपना झोला उठा कर राशन की दुकान की तरफ बढ़ा. वहां काफी लंबी लाइन देख कर मेरी हिम्मत जवाब देने लगी.

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