आश्चर्य मत करिए, इतना परेशान होने की भी जरूरत नहीं है. कोई चाहे कुछ कहे, कुछ समझे, हम तो खम ठोक कर कहेंगे कि कमीशनखोरी हमारा नैतिक, पारिवारिक, सामाजिक तथा उस सब से ऊपर उठ कर राष्ट्रीय दायित्व, राष्ट्रीय कर्तव्य है. बिना कमीशन लिए कोई भी कार्य करना सिर्फ अपराध ही नहीं बल्कि घोर राष्ट्रद्रोह है, जिस के अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए. बिना कमीशन लिए किसी का कोई भी कार्य करना, अनैतिक ही नहीं अपने ही बंधुबांधवों के साथ अन्याय भी है. इस से पूरे समाज में एक गलत संदेश भी जाता है कि बिना रुपयापैसा लिएदिए भी कार्य हो सकते हैं. साथ ही, इस से रुपए की क्रयशक्ति पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लगता है क्योंकि आमतौर पर यह माना जाता है कि रुपयों के द्वारा कुछ भी खरीदा जा सकता है, किसी को भी खरीदा जा सकता है. तो फिर क्या इन रुपयों से एक अदने से ईमान को नहीं खरीदा जा सकता?

कमीशनखोरी समाज में समानता की भावना का विकास करती है. कमीशन, जहां देने वाले व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि करता है, वहीं लेने वाले व्यक्ति के बैंकबैलेंस को बढ़ाता है. कमीशन देने और लेने वाले व्यक्तियों में स्वस्थ, सौहार्दपूर्ण संबंध बन जाते हैं. उन के संबंधों में खुलापन आ जाता है. वे अंतरंग बन जाते हैं. कमीशन उन के बीच पद की दूरी को पाटने के लिए सेतु का काम करता है. कमीशन लेने के बाद बड़े से बड़ा अधिकारी भी अत्यंत विनम्र हो जाता है तथा कमीशन देने वाला मरियल सा आदमी भी कड़क से कड़क तथा बड़े से बड़े अधिकारी के सिर पर चढ़ कर बात करता है. कमीशन वह मोहनी विद्या है जिस से किसी भी अधिकारी को वश में कर उस से मनमाफिक कार्य करवाए जा सकते हैं. कमीशनरूपी ब्रह्मास्त्र असंभव को भी संभव बना देता है. कमीशन देने के बाद व्यक्ति अपनी कार्यसिद्धि के लिए पूरी तरह निश्ंिचत, पूरी तरह आश्वस्त हो जाता है. उसे पता होता है कि अब चाहे जो भी हो जाए, उस का कार्य हो ही जाएगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...