‘‘शादी की 45वीं सालगिरह मुबारक हो,’’ शादी की पहली सालगिरह की तरह कमला ने सुबहसुबह शर्माजी के कानों में धीरे से कहा. शर्माजी ने धीरे से आंखें खोलीं और कहा, ‘‘तुम्हें भी मुबारक,’’ और शरारती अंदाज में हाथ आगे बढ़ाना चाहा.

कमला एकदम ठिठक गई, ‘‘तुम भी कमाल करते हो, अभी बच्चे आ जाएंगे,’’ लेकिन फिर खुद ही याद आया, बच्चे घर में कहां हैं. वे तो 6 महीने पहले ही दिल्ली जा कर बस गए हैं. पोतेपोतियों की याद दिल से निकल ही नहीं रही थी. लगता था अभी रिंकी और बंटी दौड़ कर आएंगे और हमारी गोद में बैठ कर कहेंगे, ‘दादीजी, हमें कहानियां सुनाइए.’

हाथ में चाय का प्याला पकड़ते हुए शर्माजी ने कहा, ‘‘बच्चों का फोन नहीं आया. इतनी व्यस्त जिंदगी में हम बूढ़ों की सालगिरह कौन याद रखेगा.’’

फिर शर्माजी के यारदोस्तों के फोन आए. सभी शर्माजी व कमलाजी को सालगिरह की मुबारकबाद दे रहे थे. फिर दोनों लोग बड़ी देर तक गपें मारते रहे थे. पुराने दिनों की याद कर के दोनों को बहुत हंसी आ रही थी. अचानक शर्माजी चहक उठे, ‘‘चलो कमला, हम आज के दिन कुछ अलग करते हैं.’’

‘‘छोड़ो जी, लोग क्या सोचेंगे, कहेंगे कि बुढ़ापे में मस्ती चढ़ी है.’’

शर्माजी ने मजाकिया अंदाज में कहा, ‘‘जो हमें बुड्ढा कहेगा उसे हम भी जवाब देंगे, ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’.’’

कमलाजी खिलखिला कर हंस पड़ीं. शर्माजी के बारबार आग्रह करने पर कमलाजी बाहर जाने के लिए तैयार हो गईं. शर्माजी ने कमलाजी से शादी वाली साड़ी पहनने को कहा और साथ में थोड़ा मेकअप व लिपस्टिक भी लगाने को कहा.

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