इंसान की जिंदगी में सैक्स का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है. मगर 46-48 वर्ष के बाद या इस उम्र के दहलीज पर पहुंचतेपहुंचते आदमी और औरत दोनों में सैक्स का आवेग उदासीन होने लगता है. उम्र के इस पड़ाव पर यह दीये में पड़ी बाती की बुझती हुई लौ के समान होता है. सैक्स की इच्छा तो हर इंसान को ताउम्र होती है मगर इस रसगर्भित आनंद में मन का साथ तन नहीं दे पाता है. अकसर पुरुष या स्त्री इस उम्र में  सैक्स के प्रति इच्छा रहते हुए भी शारीरिक ऊर्जा समाप्त होने के कारण भीतर से अवसादग्रस्त रहने लगते हैं. अवसाद सैक्स को और खत्म कर देता है. डाक्टरों के अनुसार, पुरुष में आए इस ठहराव में शरीर में मौजूद ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ का बहुत बड़ा हाथ होता है. यह ग्रंथि पुरुष की पौरुषता की निशानी है. यह गं्रथि यौवनारंभ से 50-55 वर्ष की आयु तक सक्रिय रहने के बाद अपनेआप आकार में घटने लगती है. मनुष्य में होने वाली यह एक सामान्य प्रक्रिया है.

हजारों मनुष्यों में से एक में पौरुषता की यह निशानी ‘प्रोस्टेट ग्रंथि’ घटने के बजाय बढ़ने लगती है. ऐसे लोगों का आरंभिक अवस्था में संभोग करने को बारबार मन करता है. ऐसे पुरुष जो सप्ताह में एक बार समागम करते थे वे रोज या 2-3 बार संभोग करने को उत्सुक रहते हैं. मगर बाद में वे संभोग करने के योग्य नहीं रह जाते. ऐसे में स्त्री या पत्नी को पति की इस मनोदशा को समझना होगा. पति की उम्र के साथसाथ पत्नी की भी उम्र बढ़ रही है. सैक्स के प्रति अनिच्छा उसे भी हो रही है. लेकिन वह घर के विभिन्न कामधंधों में फंस कर अपने को भुलाए रखती है. यह भी होता है कि स्त्री अपनेआप में यह हार मान लेती है कि अब सैक्स करने की उम्र नहीं रही. साधारणतया स्त्रियों का ऐसा ही विचार होता है, लेकिन उन का यह सोचना गलत होता है. वे अपनी गलत धारणा के कारण प्रकृतिप्रदत्त सैक्स का भरपूर आनंद बढ़ती उम्र के साथ नहीं उठा पातीं. सैक्स एक रति क्रिया है जिस में 2 विपरीत लिंग आपस में एकदूसरे के साथ शारीरिक समागम करते हैं. इस रति क्रिया से शारीरिक ऊर्जा मिलती है. उस से उक्त दोनों शरीर को भरपूर आनंद व संतुष्टि प्राप्त होती है. शरीर फिर से आगे काम करने के लिए रिचार्ज हो जाता है.

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