गरमियां आते ही सभी के मन में लू लगने का डर समाने लगता है. लेकिन क्यों करें चिलचिलाती गरमी में लू का सामना जब हैं इस से बचने के उपाय. लू से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं डा. प्रेमचंद स्वर्णकार.

भारत गरम जलवायु वाला देश है. विशेषकर मध्य भारत और उत्तर भारत में तो मई और जून के महीनों में ज्यादा ही गरमी पड़ती है. सूरज की गरम धूप के साथ तेज हवाएं व्यक्ति को घर के अंदर रहने पर विवश करती हैं. लेकिन आवश्यक कार्यवश या औफिस आनेजाने के लिए लोगों को इस भीषण गरमी में भी निकलना पड़ता है और ऐसे वक्त ही लू यानी हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है.

देश में प्रतिवर्ष हजारों लोग लू का शिकार हो कर जान गंवा बैठते हैं. इन में से कई तो अज्ञानता या असावधानियों की वजह से इस के प्रकोप से बच नहीं पाते जबकि लू से बचने के उपाय बहुत कठिन नहीं हैं.

क्या है हीट स्ट्रोक

मनुष्य के शरीर का तापक्रम सामान्य 97 डिगरी से 99 डिगरी सैंटीग्रेड के बीच होता है. सामान्य परिस्थितियों में शरीर पर आसपास के तापमान की घटबढ़ का विशेष असर नहीं होता. मानव मस्तिष्क में स्थित एक भाग हाइपोथैलेमस विभिन्न प्रक्रियाओं के माध्यम से शरीर के तापक्रम को स्थिर रखने में सहायक होता है. जब गरमी बढ़ती है तो शरीर का तापक्रम कुछ बढ़ता है लेकिन पसीना निकलने से वह फिर सामान्य हो जाता है.

जब बाहरी वातावरण का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है तो शरीर भी बहुत तेजी से पसीना निकालना शुरू कर देता है. यहां तक कि 6 से 8 लिटर तक पानी, शरीर से पसीने के रूप में निकल सकता है. इस पसीने के साथ ही प्रति लिटर, 2 ग्राम सोडियम लवण भी बाहर निकल जाता है और फिर एक स्थिति ऐसी आती है कि शरीर से पसीना निकलना कम हो जाता है. शरीर के ताप को नियंत्रित करने वाली इस स्थिति में शरीर का तापमान बहुत बढ़ जाता है और पानी की कमी हो जाती है. अत्यंत तेज बुखार (110 डिगरी या इस से ऊपर) के साथ रोगी में अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं. इस बीमारी को लू लगना यानी हीट स्ट्रोक कहते हैं.

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