मुंबई के एक नशा मुक्ति केंद्र को देख कर पता चलता है कि वहां समाज के किस वर्ग से लोग आते हैं. यहां ऐसे अमीर लोगों के किशोर बच्चों की संख्या ज्यादा है, जिन के पास पैसा तो बहुत है पर अपने बच्चों का ध्यान रखने के लिए समय बिलकुल नहीं. तय रूटीन के अनुसार ये बच्चे महीने में 2 बार विदेश घूमने जाते हैं, खातेपीते हैं, फिल्में इत्यादि देखते हैं.

इस नशा मुक्ति केंद्र को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहां पर इस तरह के मामले बारबार आते रहेंगे. मैं नशे के आदी एक ऐसे युवा को जानती हूं, जो इस केंद्र में तीसरी बार आया है. यहां पर आने वाले लोगों के दुख की वजह उन को नजरअंदाज किया जाना, उन के साथ बचपन में बुरा बरताव होना या पैसे के दम पर बिगड़ैल बन जाने से भी कहीं बड़ी है. इस की वजह अकसर मानसिक सेहत का दुरुस्त न होना होती है और मानसिक सेहत दिमाग में दौड़ने वाले रसायनों में गड़बड़ी की वजह से बिगड़ती है. पालतू कुत्ते हो सकते हैं सहायक: आजकल इस तरह के प्रयोग कर के देखे जा रहे हैं कि क्या कुत्ते ऐसे युवाओं या किशोरों की ठीक होने में सहायता कर सकते हैं, जो नशा मुक्ति केंद्रों में अपना इलाज करवा रहे हैं?

इस शोध की शोधकर्ता लिंडसे ऐल्सवर्थ वाशिंगटन स्टेट विश्वविद्यालय में शोध की छात्रा हैं. वे स्पोकन ह्यूमन सोसायटी से ऐक्सैल्सिअर यूथ सैंटर में कुत्ते ले कर आईं. इस सैंटर में इलाज कराने वाले सभी किशोर (लड़के) थे. ऐक्सैल्सिअर के रोजाना मनोरंजन के समय में यहां के कुछ किशोरों ने वीडियो गेम्स से ले कर बास्केटबौल खेल कर अपना समय गुजारा. कुछ किशोरों ने कुत्तों की साफसफाई कर, उन को खाना खिला कर व उन के साथ खेल कर अपना समय गुजारा. इस तरह की क्रियाओं को शुरू करने से पहले और समाप्त करने के बाद किशोरों का एक प्रक्रिया के द्वारा मूल्यांकन किया जाता है. इस में मनोचिकित्सक 1 से 5 तक के स्केल पर किशोरों की 60 प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन करते हैं और उन की भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं.

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