किसी भी शिशु के शुरुआती 1000 दिन उस के जीवन का आधार होते हैं. इसी समय के पोषण से उस के भविष्य की नींव बनती है. लेकिन भारत में बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य को ले कर काफी सुधार होने के बावजूद लाखों बच्चे अपने 5वें जन्मदिन से पहले विटामिन और मिनरल की कमी से जूझ रहे होते हैं. विटामिन और मिनरल की कमी को माइक्रोन्यूट्रिएंट की कमी भी कहा जाता है और यह शिशुओं में बीमारियां होने व मृत्यु दर बढ़ने का सब से बड़ा कारण है.

पोषक तत्त्वों की कमी

स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, विटामिन व मिनरल की कमी का सब से भयावह परिणाम यह है कि प्रतिवर्ष पैदा होने वाले 26 लाख मिलियन बच्चों में से 7 लाख से ज्यादा शिशु शुरुआती समय तक भी जीवित नहीं रह पाते. स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार देश की 13 फीसदी आबादी 6 साल से कम उम्र के बच्चों की है और उन में से 12.7 लाख बच्चों की पोषण की कमी के चलते रोजाना मौत होती है. इन गंभीर तथ्यों में यह जोड़ना भी जरूरी है कि जिस शुरुआती दौर में शिशुओं को प्रचुर मात्रा में माइक्रोन्यूट्रिएंट की सब से ज्यादा जरूरत होती है, उसी दौर में 75 फीसदी शिशुओं की मृत्यु का कारण पोषक तत्त्वों की कमी पाया गया है.

शारीरिक विकास के लिए

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के नियोनेटोलौजिस्ट, डा. सतीश सलूजा के अनुसार, ‘‘6 से 24 महीने की उम्र के बीच के शिशुओं में कमजोर विकास और संक्रमण होने के मामले सब से ज्यादा आते हैं और इस का कारण उन्हें सही पोषण न मिलना है. शिशुओं के सामान्य विकास के लिए सही मात्रा में विटामिन और मिनरल डाइट देना बहुत जरूरी है. 5 साल से कम उम्र के शिशुओं में निमोनिया, डायरिया, खसरा और मलेरिया होने की मुख्य वजह कुपोषण है.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...