‘‘आप की बेटी पढ़ाई में बहुत कमजोर है. उसे क्लास में पढ़ाया याद नहीं रहता,’’ जब टीचर रीमा को उस की बेटी अनिका के बारे में यह बता रही थी, तब उसे टीचर की बातों पर यकीन नहीं हो रहा था.

3 साल की अनिका देखने में तंदुरुस्त थी और उस का कद भी उस की उम्र के हिसाब से सही थी, तो फिर उसे पढ़ने या याद करने में क्या दिक्कत हो सकती है? यही सोच रीमा परेशान हो रही थी.

रीमा ने घर आ कर अनिका के बरताव पर गौर किया, तो उसे समझ में आया कि अनिका एकाग्र हो कर न तो खेलती है और न ही पढ़ती है. उसे बहुत हैरानी हो रही थी कि क्यों कभी उस ने अनिका के इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया. रीमा का पूरा ध्यान उस की कदकाठी और वजन पर रहता था. यह सिर्फ रीमा की ही कहानी नहीं है. रीमा जैसी न जाने कितनी मांएं हैं, जो सिर्फ बच्चे की शारीरिक सेहत पर ध्यान देती हैं, लेकिन यह कभी नहीं सोचतीं कि बच्चे का मानसिक विकास भी बहुत जरूरी है. विशेषज्ञों के अनुसार शिशु के शुरू के 1000 दिन उस के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होते हैं. इसलिए शिशु के पोषक तत्त्वों से युक्त आहार यानी न्यूट्रिएंट डैंस फूड पर खास ध्यान देना चाहिए, लेकिन बहुत कम पेरैंट्स अपने शिशु के दिमाग या मानसिक विकास पर चर्चा करते हैं.

जरूरी है पोषक तत्त्व

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के नियोनेटोलौजिस्ट डा. सतीश सलूजा कहते हैं, ‘‘भारत में बहुत कम अभिभावक बालरोग विशेषज्ञ से शिशु के मानसिक विकास से जुड़े आहार की बात करते हैं. अधिकतर अभिभावक सिर्फ शिशु के वजन, हाइट को ले कर फिक्रमंद हैं और इन्हीं से जुड़े आहार के बारे में पूछते हैं. अकसर यह भी देखा गया है कि लोग अपने परिवार के खानपान के हिसाब से ही शिशु का खाना निश्चित करते हैं. इस स्थिति में कई शिशु पोषक तत्त्वों जैसे आयरन, जिंक और कैल्सियम की कमी से बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि मातापिता बच्चे के मानसिक विकास से जुड़े पोषक तत्त्वों की जरूरतों के बारे में डाक्टर से परामर्श लें.’’

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